जो मित्र एन वक्त पर, जब उनकी सबसे अधिक जरूरत हो बार-बार अण्डर ग्राउण्ड हो जायें, क्या वे विश्वास के काबिल हो सकते हैं?-09.01.2020
Thursday 9 January 2020
Wednesday 8 January 2020
MOST Must Be MOST (maximum) in everywhere, But Unfortunately MOST is MUST.
MOST Must Be MOST (maximum) in everywhere, But Unfortunately MOST is MUST. [MOST को सर्वत्र MOST (सर्वाधिक) होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से MOST मस्त (MUST) है!]-आदिवासी ताऊ-08.01.2020.
प्रधानमंत्री जी क्या भविष्य में जब-जब भी घुसपैठिये या आतंकी देश में घुसेंगे तो क्या हर बार NPR/NRC की जाती रहेगी जायेगी? फिर आपकी क्या जरूरत है?
प्रधानमंत्री जी क्या भविष्य में जब-जब भी घुसपैठिये या आतंकी देश में घुसेंगे तो क्या हर बार NPR/NRC की जाती रहेगी जायेगी? फिर आपकी क्या जरूरत है?
हमारे प्रबुद्ध मित्र जी जो विधि स्नातक भी हैं का कहना है कि—
''....NRC को लेकर सबका अपना अपना दृष्टिकोण है। सरकार का कहना है कि देश में काफी बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए हैं जो देश के संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं और आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं। और इससे डेमोग्राफिक परिवर्तन भी हो रहा है धीरे-धीरे। अंत:उनकी पहचान कर के उन्हें नागरिकों से अलग किया जाए तथा जैसे संभव हो, उनके देश पहुंचाया जाए। ताकि देश के संसाधन नागरिकों को ही काम आएं। दूसरि कक्ष जो है वो ये कि इससे परेशानी तो आएंगी, लोगों के पास दस्तावेज भी नहीं है आदि आदि। तय आपको करना है कि आप किस तरफ हैं।''
सरकार के तर्क शुरू से ही प्राथमिक शाला के बच्चों जैसे रहे हैं। जैसे किसी छोटे बच्चे का पैन गुम हो जाने पर वह अपने अध्यापक से जिद करे कि कक्षा के सभी बच्चों की तलाशी ली जाये। तलाशी के बाद भी पैन नहीं मिलता है फिर भी बच्चे की जिद कायम रहती है। सरकार को नोटबंदी में काला धन नहीं मिला और कितनी ही NPR/NRC कर लो घुसपैठियों तथा आतंकियों को पहचान करना या उनको रोकना असंभव है।
आतंकियों को या घुसपैठियों को ढूंढने का क्या यही एक मात्र तरीका और रास्ता है कि देश के हर एक नागरिक को घुसपैठिया, संदिग्ध और आतंकी मानकर सबकी पहचान प्रमाणित की जाये?
यदि एक मात्र रास्ता है तो फिर देश की गुप्तचर संस्थाओं, पुलिस और सेना के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े होना लाजिमी हैं।
70 सालों से लगातार भारत में आतंकी और घुसपैठिये प्रविष्ट होते रहे हैं। मोदी सरकार के दौरान भी यह सिलसिला रुका नहीं है। इस बात की कोई गारण्टी भी नहीं है कि आगे यह सिलसिला रुक ही जायेगा।
ऐसे में सवाल यह भी उठना स्वाभाविक है कि भविष्य में जब-जब घुसपैठिये या आतंकी देश में घुसेंगे तो क्या हर बार यही तरीका अपनाया जाएगा?
देश के लोगों को कतार में खड़ा करके अपने नागरिकता प्रमाणों को लेकर खड़ा होना होगा?
ऐसे में सवाल तो यह भी है कि जब हर पर नागरिकों को ही अपने आप को नागरिक सिद्ध करना है तो ऐसी सरकार एवं सरकारी व्यवस्था की जरूरत ही क्या है?
नोट: यह लाइव पूरा नहीं हो सका क्योंकि नेटवर्क अचानक चला गया।
आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, 9875066111 (Between 10 to 18 Hrs), 08.12.2019.
https://www.facebook.com/NirankushWriter/videos/1010022976024133/
https://www.facebook.com/NirankushWriter/videos/1010022976024133/
Tuesday 7 January 2020
नागरिकता पर सवाल उठाने वाली सरकार हम देशवासियों से है या हम देशवासी सरकार से हैं?
सरकार हम देशवासियों से है या हम देशवासी सरकार से हैं? हमें इस बात को गम्भीरता से समझना होगा। सरकार का 5 साल को निर्वाचन करने वाले देशवासियों की नागरिकता पर सवाल उठाने वाली सरकार को ही उठ जाना होगा।-07.01.20
मौनी मित्रो ससम्मान विदा लीजिये
यदि अधिकतम मौनी मित्रों को मेरी वाल की नोटिफिकेशन नहीं दिखती या नहीं मिलती है तो उनका फ्रेंडलिस्ट में बने रहना निरर्थक है। प्लीज ससम्मान विदा लीजिये। 800 लोग वेटिंग में हैं।-आदिवासी ताऊ, 07.01.2020
मैं JNU में हुई हिंसा की कड़े शब्दों में भर्तस्ना करता हूँ।
मैं JNU में हुई हिंसा की कड़े शब्दों में भर्तस्ना करता हूँ। साथ ही संविधान, लोकतंत्र और कानून का मखौल बनते हुए देखने वालों की भी निंदा करता हूँ? कितने FB फ्रेंड सहमत हैं?-आदिवासी ताऊ, NC-HRD (MOST VOICE), 07.01.2020, 9875066111
Monday 6 January 2020
अतीत के गौरव के सहारे कोई कौम या समुदाय आखिर कब तक अपने आप को खुशफहमी में रख कर आज की चुनौतियों का सामना कर सकता है?
अतीत के गौरव के सहारे कोई कौम या समुदाय आखिर कब तक अपने आप को खुशफहमी में रख कर आज की चुनौतियों का सामना कर सकता है? आखिर इन बातों से क्या हासिल होने वाला है?
-आदिवासी ताऊ, 06.01.2020
वंचितों की एकता
वंचितों की एकता हेतु हम गत 70 सालों से लगातार सक्रिय हैं, मगर हमारी एकता की हकीकत हम जानते हैं! यदि हम वाकयी वंचितों/MOST की सच्ची एकता के आकांक्षी हैं तो इस दिशा में एक कदम बढ़ाने का सही वक्त है। आपका सपरिचय स्वागत है।-आदिवासी ताऊ-06.01.2020
Sunday 5 January 2020
सामूहिक कार्य करना अवश्य सुनिश्चित किया जाये।
निजी तौर पर, जिसको जो भी पसन्द हो करें, मगर संवैधानिक हकों की रक्षा हेतु कुछ न कुछ ऐसा सामूहिक कार्य करना अवश्य सुनिश्चित किया जाये। जिसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम निकलें।
-आदिवासी ताऊ, 05.01.20, 9875066111
आम लोगों का हक मारकर करोड़ों जमा करो और कुछ लोगों के लिये कुछ हजार अनुदान करो, क्या यह भी 'पे बैक टू सोसायटी' है?
आम लोगों का हक मारकर करोड़ों जमा करो और कुछ लोगों के लिये कुछ हजार अनुदान करो, क्या यह भी 'पे बैक टू सोसायटी' है? 05.01.2020
क्या केवल नगद अनुदान करना ही "पे बैक टू सोसायटी" का प्रमाण है?
क्या केवल नगद अनुदान करना ही "पे बैक टू सोसायटी" का प्रमाण है?-03.01.2020
जीवन का अंतिम लक्ष्य आनंद नहीं, अपितु सम्पूर्णता है।
जीवन का अंतिम लक्ष्य आनंद नहीं, अपितु सम्पूर्णता है।
-आदिवासी ताऊ-05.01.2020, 8561955619
-आदिवासी ताऊ-05.01.2020, 8561955619
Saturday 4 January 2020
¿विचारणीय गम्भीर सवाल?
¿विचारणीय गम्भीर सवाल?
जो विचार संविधान के खिलाफ हैं, वो देशद्रोह है, या जो विचार संघ के हिंदुत्व के खिलाफ हैं, वो देशद्रोह है? पूर्वाग्रह रहित विमर्श हेतु देशभक्तों का स्वागत।
-आदिवासी ताऊ-04.01.2020, 9875066111
Friday 3 January 2020
2014 से लगातार घटिया षड्यंत्र
मुझ जैसे अराजनीतिक व्यक्ति को निपटाने हेतु जिसके द्वारा 2014 से लगातार घटिया षड्यंत्र किये जा रहे हैं। वह राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के विरुद्ध क्या कुछ नहीं करता होगा। जबकि मैं राजनीतिक रूप से उसके लिए कोई चुनोती पेश नहीं कर सकता!-03.01.2020
मुखौटाधारी वो चेहरे जो संदिग्ध और लगातार निष्क्रिय हैं।
मुखौटाधारी वो चेहरे जो संदिग्ध और लगातार निष्क्रिय हैं। आज से उनको अनफ्रेंड करूंगा। बेशक मुझे फेसबुक आईडी बन्द करनी पड़े, लेकिन ऐसे लोगों को मित्रता सूची में शामिल रखना खुद का ही अपमान है, जो अब स्वीकार नहीं।-03.01.2020
आनन्द रहित जीवन निरर्थक, निष्फल और उबाऊ बन जाता है।
बेशक आनंद जीवन का प्रथम या अंतिम लक्ष्य नहीं है, लेकिन आनन्द रहित जीवन निरर्थक, निष्फल और उबाऊ बन जाता है।
-आदिवासी ताऊ-03.01.2020, 8561955619
-आदिवासी ताऊ-03.01.2020, 8561955619
Thursday 2 January 2020
आदिवासी वही हो सकता है, जिसने आदिवासी कुल में जन्म लिया हो!
इतिहास में कोई एक उदाहरण मिल सकता है, जब कोई गैर आदिवासी, आदिवासी बन गया हो? नहीं, यह असंभव है, क्योंकि आदिवासी वही हो सकता है, जिसने आदिवासी कुल में जन्म लिया हो!
आदिवासी ताऊ-02.01.2020
अपने फोटो लगायें। अन्यथा मजबूरन मुझे उन्हें हटाना होगा!
जिन मित्रों ने अपने चेहरे पर नकाब लगा रखी है या जो बिना फोटो हैं, कृपया अपने फोटो लगायें। अन्यथा मजबूरन मुझे उन्हें हटाना होगा!—02.01.2020
आदिवासी कोई धर्म या पंथ नहीं, बल्कि एक नस्ल है
मित्रो कोई भी आदिवासी हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, बुद्ध या जैन आदि तो बन सकता है, लेकिन फिर भी रहेगा वो आदिवासी ही, क्योंकि माता और पिता बदले नहीं जा सकते। आदिवासी कोई धर्म या पंथ नहीं, बल्कि एक नस्ल है, लेकिन कोई भी गैर आदिवासी कभी भी और कैसे भी आदिवासी नहीं बन सकता।-02.01.2020
वर्तमान बिगड़ेगा तो भविष्य कैसे सुधर सकता है?
भूतकाल जो लौटाया नहीं जा सकता। भविष्य जो अनिश्चित ही है। इनके लिये सुनिश्चित वर्तमान को दांव पर लगाने वाली पीढ़ी चिंतन करें। वर्तमान बिगड़ेगा तो भविष्य कैसे सुधर सकता है।
-आदिवासी ताऊ, 9875066111, 02.01.2020
क्या हम तैयार हैं? NPR के बाद NRC तय है।
क्या हम तैयार हैं? NPR के बाद NRC तय है। यदि वोटर/राशन कार्ड, आधार, मार्कशीट, पासपोर्ट, PAN कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस आदि को भारत के नागरिक होने का सबूत/प्रूफ नहीं माना गया तो कैसे सिद्ध करेंगे?-आदिवासी ताऊ, 9875066111, 02.01.2019
जिन मित्रों ने अपने चेहरे पर नकाब लगा रखा है, वे कृपया चेहरे से नकाब हटायें और अपने मुखड़े के शौर्य के दर्शन करायें।
जिन मित्रों ने अपने चेहरे पर नकाब लगा रखा है, वे कृपया चेहरे से नकाब हटायें और अपने मुखड़े के शौर्य के दर्शन करायें।-02.01.2020
गढे मुर्दों को जिंदा करने के बजाय, जिंदों में जान फूंकने की कोशिश करें।
गढे मुर्दों को जिंदा करने के बजाय, जिंदों में जान फूंकने की कोशिश करें।
आदरणीय @Shrikumar Soni जी आप लिखते हैं कि ''डॉक्टर साहब इस देश के बहुत सारे संगठन अलग-अलग शौर्य दिवस मनाते हैं ।हमारे अधिकांश त्यौहार वास्तव में शौर्य दिवस ही हैं ।दशहरा भी शौर्य दिवस है होलिका भी शौर्य दिवस है और अभी लेटली 6 दिसंबर भी शौर्य दिवस के रूप में मना रहे हैं कुछ लोग। और इन शौर्य दिवसों से दिक्कत है हम अपमानित होते हैं हमारे घाव करेदे जाते हैं। हम चाहते हैं जो कष्ट जो अपमान हम लोग उठा रहे हैं उसका थोड़ा सा नमोना दुश्मन को भी मिलना चाहिए इसलिए 1 जनवरी हमारे लिए शौर्य दिवस है'' बेशक तकनीकी तौर पर आपकी कलम सत्य की बात करती हुई प्रतीत होती है, लेकिन अनेक बार चाहकर भी सत्य नहीं बोलना या बेवजह सत्य नहीं बोलना, जनहित में सत्य से बड़ा सत्य हुआ करता है। इस संदर्भ में, मैं कुछ बातें कहना चाहता हूं।
पहली बात तो यह कि व्यक्तिगत रूप से मुझे किसी के किसी दिवस मनाने या नहीं मनाने से किसी प्रकार का कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन हमारा वंचित समुदाय जिन कारणों से कमजोर होता है, उन पर लिखना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूं। जो जारी रहेगा।
दूसरी बात यह कि कालांतर में कुछ असत्यों के जनमानस ने सत्य दिल स्वीकार कर लिया है और उनके साथ जीना शुरू कर दिया है और कुछ सत्यों को असत्य मानकर जीना शुरू कर दिया है। इस कारण उन्हें उन दिवसों को मनाने से किसी प्रकार की कोई पीड़ा या अपमान की अनुभूति नहीं होती है! हां कोई 00.01 फीसदी लोग हैं, जो इस अपमान की अनुभूति से पीड़ित होने का सोशल मीडिया के जरिये अहसास कराते रहते हैं। हकीकत में उन्हें भी कोई पीड़ा नहीं है। क्योंकि मैं उनके घरों तक जाकर आया हूं और हकीकत जानता हूं। उनके प्रवेशद्वार पर गनेश स्थापित होते हैं। वास्वत में यह उनकी आस्था का सवाल बच चुका है। अत: मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है। मगर इन लोगों को इस बात का अहसास क्यों नहीं होता कि उनकी कौम के संवैधानिक हकों को सरेआम कोई और छीन रहा है। शायद यह जरूरी नहीं है या संविधान का ज्ञान नहीं है? कारण कोई भी हो मगर दोनों ही स्थिति दु:खद हैं।
तीसरी बात यह कि यदि हम पुराने जख्मों को कुरेदेंगे तो उन्हें भरने की जिम्मेदारी भी हमारी ही होगी। क्या जख्मों को कुरेदने वाले इन जख्मों को भरने में सक्षम हैं? यदि जख्मों को भर नहीं सकते तो कुरेदने का अपराध क्यों? इससे क्या हासिल होगा? क्या किसी मृत इंसान को जिंदा किया जा सकता है?
चौथी बात यह कि यदि हम पुराने मुर्दों को कुरेदने में जितनी ऊर्जा खर्च कर रहे हैं, इससे आधी सी भी ऊर्जा वंचितों को सकारात्मक रीति से एक करने में लगाते तो आज भारत की सत्ता वंचितों के हाथ में होती और तब किसी प्रकार का शौर्य दिवस मनाने की या दूसरों के शौर्य दिवस मनाने पर व्यथित होने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
पांचवीं बात यह कि अभी भी वक्त है कि गढ़े मुर्दों को जिंदा करने के आत्मघाती कदम उठाने के बजाय, हम जीते जागते, लेकिन सोये हुए इंसानों को जगायें, जो मुर्दों से कम नहीं हैं, मिलकर हम सब उनमें नफरत के बजाय सकारात्मक तथा सौहार्द की जान फूंकने की कोशिश करें। यदि हम वंचितों को जगा नहीं सकते तो कम से कम हम उन्हें दूसरों के खिलाफ उकसाकर एवं भड़काकर मौत के मुंह में तो नहीं धकेलें।
आदरणीय यदि हम मिलकर अपने लक्ष्य की ओर बढने का उपाय करेंगे तो ही हमें मंजिल मिलेगी। हम दूसरों को उकसाकर, दूसरों को मजबूत ही करते हैं, जो हमारे लिये आत्मघाती विचार है। याद रहे कौओं के कोंथने से भैंसे नहीं मरा करती।
EXTRA ADDED__>>>> अंत में आपको सच का आईना दिखाने के लिये आदिवासियों की पीड़ा को भी जोड़ने को मजबूर हूं कि ''1 जनवरी 1948 की अंतरिम सरकार में कानून मंत्री डॉ. भीमराव अम्बेड़कर थे, गृह मंत्री सरदार पटेलथे, जिन्होंने संविधान सभा में, जो तत्कालीन संसद भी थी, खरसावां हत्याकांड में मारे गए 30 हजार से अधिक आदिवासियों पर चर्चा तक नहीं की। बताइये इस दिन को किसके खिलाफ शर्म, शौर्य या काला दिवस मनाया जावे? साथ ही यह भी बतावें कि ऐसा करने से हमें क्या हासिल होगा?''
आगे आपकी मर्जी।
आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा
Please Join: 20-20 Mission 4 MOST
9875066111, 02.01.2020
क्या तकनीकी तौर पर, यह पता लगाने का कोई तरीका है कि वह कौन महाशय था?
शायद कल का मेरा लाइव सुनकर कोई एक मित्र छोड़ गया। क्या तकनीकी तौर पर, यह पता लगाने का कोई तरीका है कि वह कौन महाशय था?-02.01.2020
Wednesday 1 January 2020
एक कौम शौर्य दिवस मनाएगी तो हर एक कौम को यह हक होगा
यदि एक कौम शौर्य दिवस मनाएगी तो हर एक कौम को यह हक होगा कि वे अपने-अपने पूर्वजों के शौर्य दिवस मनायें। याद रहे हमारी जीत में हम किसी की हार के अपमान को जीवित करने का अपराध कर रहे हैं। यह सौहार्द के खिलाफ है। क्या यह उचित होगा?-01.01.2020
किसी के पूर्वजों के सम्मान को चोट पहुंचाकर हम उसे हमारा शुभचिंतक नहीं बना सकते
किसी भी व्यक्ति की आस्था तथा उसके पूर्वजों के सम्मान को चोट पहुंचाकर हम उसे हमारा शुभचिंतक नहीं बना सकते।-01.01.2020
अपनी आस्था के लिये जो चाहें पढ़ें, लेकिन संविधान को पढ़े बिना असली जागरूकता नहीं लायी जा सकती।
अपनी आस्था के लिये जो चाहें पढ़ें, लेकिन संविधान को पढ़े बिना असली जागरूकता नहीं लायी जा सकती।-01.01.2020
जयकारे होश छीनकर केवल जोश ला सकते
जयकारे होश छीनकर केवल जोश ला सकते
यदि गीता, रामायण, ब्रह्मा, विष्णु, राम, शिव, दुर्गा, भीम, एकलव्य, बिरसा आदि में से किसी एक या सबकी जय बोलने से देश में इंसाफ कायम हो सकता है तो इनकी जय बोलने में किसी को आपत्ति नहीं हो सकती। मगर कड़वा सच यह है कि जयकारे होश छीनकर केवल जोश ला सकते, जो गुलाम बनाने का एक मनोवैज्ञानिक तरीका है। याद रहे हमें गुलामी नहीं आजादी चाहिये और वह भी अपने स्वाभिमान के साथ। अतः जोहार (प्रकृति की जय हो) के अलावा किसी की भी जय बोलना, गुलामी स्वीकारने के सिवा कुछ भी नहीं। मगर कोई भी किसी की भी जय बोले हमें कोई आपत्ति नहीं, क्योंकि सबको निर्णय लेने का हक है। कोई जिये या घुट-घुट कर मरे, जीवन उसका अपना है।-आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, 20-20 Mission 4 MOST, 9875066111, 01.01.2019.
जो बात संविधान के खिलाफ है वो देश के भी खिलाफ है।
Amar Chand Meena जी जो बात संविधान के खिलाफ है वो देश के भी खिलाफ है। क्या कोई भी धर्म और, या जाति देश तथा संविधान से बढ़े हो सकते हैं? कृपया संविधान पढ़ना शुरू करें। आपके व्यक्तित्व का विकास होगा।-आदिवासी ताऊ-9875066111, 01.01.2020
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वर्तमान परिदृश्य में आदिवासी मीणा समुदाय की दशा और दिशा
वर्तमान परिदृश्य में आदिवासी मीणा समुदाय की दशा और दिशा हम हर दिन कुछ न कुछ सीखते और बदलते रहते हैं। सबसे पहले ...
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जीवन का अंतिम लक्ष्य आनंद नहीं, अपितु सम्पूर्णता है। -आदिवासी ताऊ-05.01.2020, 8561955619
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आम लोगों का हक मारकर करोड़ों जमा करो और कुछ लोगों के लिये कुछ हजार अनुदान करो, क्या यह भी 'पे बैक टू सोसायटी' है? 05.01.2020
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वर्तमान परिदृश्य में आदिवासी मीणा समुदाय की दशा और दिशा हम हर दिन कुछ न कुछ सीखते और बदलते रहते हैं। सबसे पहले ...