जयकारे होश छीनकर केवल जोश ला सकते
यदि गीता, रामायण, ब्रह्मा, विष्णु, राम, शिव, दुर्गा, भीम, एकलव्य, बिरसा आदि में से किसी एक या सबकी जय बोलने से देश में इंसाफ कायम हो सकता है तो इनकी जय बोलने में किसी को आपत्ति नहीं हो सकती। मगर कड़वा सच यह है कि जयकारे होश छीनकर केवल जोश ला सकते, जो गुलाम बनाने का एक मनोवैज्ञानिक तरीका है। याद रहे हमें गुलामी नहीं आजादी चाहिये और वह भी अपने स्वाभिमान के साथ। अतः जोहार (प्रकृति की जय हो) के अलावा किसी की भी जय बोलना, गुलामी स्वीकारने के सिवा कुछ भी नहीं। मगर कोई भी किसी की भी जय बोले हमें कोई आपत्ति नहीं, क्योंकि सबको निर्णय लेने का हक है। कोई जिये या घुट-घुट कर मरे, जीवन उसका अपना है।-आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, 20-20 Mission 4 MOST, 9875066111, 01.01.2019.
No comments:
Post a Comment