Sunday 29 December 2019

भारत में न तो कोई शूद्र है और न हीं मनुस्मृति लागू है।

भारत में न तो कोई शूद्र है और न हीं मनुस्मृति लागू है।-[देखें अनुच्छेद 13-1]-आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा

जैसा कि मैंने अपनी मूल पोस्ट में लिखा है कि ''न मैं, न मेरे पूर्वज शूद्र थे। वर्तमान में तो कोई भी शूद्र नहीं है। [देखें अनुच्छेद 13-1] शूद्र असंवैधानिक और अपमानकारी संबोधन है।''

एक मित्र का कहना है कि कि ''भागवत हमे शूद्र साबित करने पे पड़ा हुआ है।''

एक अन्य मित्र का कहना है कि ''रामायण पढ़ लेना सब पता चल जायेगा।''

मुझे नहीं लगता कि संविधान पर रामायण या मनुस्मृति भारी हैं। देश रामायण या मनुस्मृति से नहीं, बल्कि संविधान से चलता है और संविधान के मुताबिक ऐसी सभी रामायण या मनुस्मृतियां जो किसी इंसान को शूद्र सिद्ध करें असंवैधानिक तथा कानून की नजर में शून्य हैं। क्या रामायण या मनुस्मृति के प्रावधानों को भारत में संविधान के उपबन्धों की भांति कानून द्वारा लागू करवाया जा सकता है? नहीं, बिल्कुल भी नहीं। फिर ऐसी बेहूदी बातों का हवाला देकर हम क्यों खुद का तथा दूसरों का समय खराब करते हैं? मुझे लगता है, इस पर विस्तार से विमर्श करने की जरूरत है।

मेरा साफ कहना है कि भागवत शूद्र नहीं कह रहा है, वह ऐसा कहेगा भी नहीं। वह इतना नासमझ या मूर्ख नहीं है, उसके पास जनबल, धनबल और बाहुबल तीनों भौतिक ताकतें हैं। इन तीनों ताकतों को संचालित करने हेतु बुद्धिबल भी है। सबसे बड़ी बात अब तो सत्ता भी है। जिसके बल पर वह आसानी से बिकने वाले वंचित समुदाय के बहरूपियों को खरीद सकता है और खरीदता भी रहा है। खरीदने का मतलब रुपयों से ही खरीदना नहीं होता है। तब ही तो बेशक कुछ मित्रों को बुरा लग सकता है, मगर असल में हमें यानी इस देश के 85 फीसदी वंचितों को शूद्र सिद्ध करने में संघ के छद्म मित्र तथा इस देश के संविधान के असली दुश्मन बसपाई और बामसेफी दिनरात लगे हुए हैं। सबसे दु:खद तो यह है कि ऐसे लोग अपने आप को अम्बेड़करवादी भी कहते हैं। अम्बेड़कर के कंधों पर बैठकर अपनी कारिस्तानियों को छिपा रहे हैं। ऐसे लोग संविधान, अम्बेड़कर और सामाजिक सौहार्द के भी असली दुश्मन हैं।

हमें हवा में गोली दागने की जरूरत नहीं है, बल्कि हमें उन बातों तथा लोगों पर भी विचार करना चाहिये, जिनके जरिये 70 साल से भारत के वंचितों को लगातार ऐसे ढोंगी लोगों द्वारा गुमराह किया जाता रहा है। क्या कारण है कि संविधान लागू होने से पहले भारत में लागू आधी-अधूरी, मनुवादी व्यवस्था (आधी अधूरी इसलिये, क्योंंकि संविधान लागू होने से पहले भारत के बड़े हिस्से पर अंग्रेजी कानून लागू था तथा आदिवासियों पर अंग्रेजों या बामणों की मनुवादी व्यवस्था लागू नहीं थी) जब संविधान का अनुच्छेद 13 (1) लागू होते ही एक झटके में शून्य और असंवैधानिक धोषित हो गयी, उसके बावजूद भी इन बसपाई, बामसेफी छद्म संघियों या अम्बेड़कर के दुश्मन, ढोंगी अम्बेड़करवादियों का एक भी भाषण मनुस्मृति का नाम लिये बिना और देश की 85 फीसदी आबादी को शूद्र घोषित किये बिना मुक्कमल/सम्पूर्ण नहीं होता है?

समय आ रहा है, जब वंचित समुदायों की मसीहाईगिरी करने वाले इन ढोंगी बहरूपियों को वंचितों द्वारा ऐसे दुत्कारा जायेगा, जैसे दूध से मक्खी फेंकी जाती है। अत: वंचित समुदाय के सभी अच्छे और सच्चे लोगों को अपने विवेक का उपयोग करने की आदत डालनी होगी। भारत में न तो कोई शूद्र है और न हीं रामायण या मनुस्मृति लागू है। यह देश संविधान से संचालित होता है, लेकिन संविधान तथा अम्बेड़कर की दुहाई देने वाले ही अम्बेड़कर के संघर्ष तथा संविधान की गरिमा को पलीता लगा रहे हैं। ऐसे लोगों से दूरी बनाना ही, इनसे बचाव का उपाय है। अन्यथा सावधानी हटी और आपके दिमांग पर इनकी शूद्रत्व वाली गुलामी घटी।

आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, 9875066111, 28.12.2019 (Between 10 to 18 Hrs.)

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