शूद्र शब्द का वैधानिक अस्तित्व 26 जनवरी, 1950 को समाप्त हो गया। जो लोग इसे जिंदा बनाये हुए हैं, वे संविधान के दुश्मन हैं। अत: किसी को शूद्र कहना गाली देना है। किसी को भी शूद्र नहीं कहें, बल्कि उसे वही कहें जो वह वास्तव में है। जैसे किसान यदि जाट, मीणा, यादव, धाकड़, जूलर, कर्मी, पाटीदार आदि जो भी है, उसे वही माना और कहा जाये। अकारण किसी को शूद्र बनाना असंवैधानिक होने के साथ-साथ नासमझी और साथ ही अशिष्टता भी है।-27.12.2019
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