Thursday 14 May 2020

वर्तमान परिदृश्य में आदिवासी मीणा समुदाय की दशा और दिशा

वर्तमान परिदृश्य में आदिवासी मीणा
समुदाय की दशा और दिशा





हम हर दिन कुछ न कुछ सीखते और बदलते रहते हैं।



सबसे पहले तो मैं यह कहना चाहूंगा कि मैं जो कुछ आज बोलने जा रहा हूं, जरूरी नहीं वो अंतिम सत्य हो? हो सकता है कि आज जो बोल रहा हूं, कल उसे मैं खुद ही अस्वीकार कर दूं। अत: आप मेरी किसी भी बात को अंतिम सत्य नहीं मानें



इसकी भी वजह है!

  • इंसान के अनुभव, ज्ञान और विज्ञान का जैसे-जैसे विस्तार होता है, वह लगातार सीखता है और अपनी पुरानी धारणाओं का खंडन करता है या उनमें सुधार करता रहता है।
  • मेरी राय में कोई भी यह नहीं कह सकता कि वह जो बोल रहा या कह रहा है, वही अंतिम सत्य है।



हम हर दिन कुछ न कुछ सीखते और बदलते रहते हैं।



  • हजारों सालों से कुछ भ्रामक और गलत धारणाओं के साथ जीवन जीते हुए हम भूल ही जाते हैं कि वह असत्य है। अचानक हमारे सामने जब सत्य प्रकट होता है, तो हम उसे सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते। अनेक बार हम सत्य को स्वीकार ही नहीं पाते और संस्कृति, धर्म, देश, माहौल, रूढियों, परम्पराओं आदि किसी न किसी बहाने सत्य को दबाने की भरसक कोशिश करते हैं, लेकिन सत्य को कोई दबा नहीं सकता है।



सत्य को तो प्रकट होना ही होता है।



  • समय और हालातों के मुताबिक हमार सत्य भी बदलता रहता है।
  • मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि हमें किसी भी विचार के साथ इसलिये नहीं चिपके रहने चाहिये कि वह हमारा या हमारे पूर्वजों का विचार है।
  • हकीकत हम चिपकते भी नहीं हैं, लेकिन जहां हमारा निजी या राजनीतिक हित पूरा होता है, वहां हमें कुछ बातों से चिपका कर रखे जाने के लिये कुछ समाज सेवक, संगठन, नेता, राजनेता या धर्माधीश ऐसी बातों से चिपकार रखना चाहते हैं। क्योंकि इसमें उनका निजी स्वार्थ निहित होता है।
  • हम मीणा भी परिवर्तन के चक्र से अलग नहीं हैं। जब सारी दुनिया बदल रही है तो हम बिना बदले कैसे रह सकते हैं?
  • अत: आज आपके सामने मैं जो कुछ बोलने जा रहा हूं, उसमें कुछ बातें ऐसी हो सकती हैं, जो मेरे पुराने वक्तव्यों से मेल नहीं खायेंगी।
  • हो सकता है कि आज जो बोलूंगा, 5 या 10 साल बाद जो बोलूंगा, वह कुछ भिन्न हो।
  • सुनने वाले को यह विरोधाभाष लग सकता है, लेकिन हकीकत में विरोधाभाष है नहीं। मेरे आज के वक्तव्य के अंत में आप इस बारे में मुझ से सवाल पूछ सकते हैं।
मुझे लगता है कि आदिवासी मीणा समुदाय की दशा और दिशा को समझने के लिये हमें कुछ मौलिक बातों पर ध्यान केन्द्रित करके उनको ठीक से समझना होगा। जिनमें बहुत सी बातें हो सकती हैं, मगर आज कुछ पहलुओं पर चर्चा करेंगे। जैसे-
  1. क्या मीणा भारत के मूलवासियों के वंशज हैं?
  2. क्या भारत के मूलवासी ही आदिवासी कहलाते हैं?
  3. क्या संविधान लागू होने से पहले मीणाओं को आदिवासी दर्जा हासिल था?
  4. क्या संविधानसभा में आदिवासियों को ही अजजा सूची में शामिल करने पर सहमति बनी थी?
  5. संविधानसभा में आदिवासियों को ही अजजा सूची में शामिल क्यों नहीं किया गया?
  6. आदिवासियों को ही अजजा सूची में शामिल करने का विरोध क्यों किया गया?
  7. क्या वास्तव में अजजा की सूची में केवल आदिवासियों को ही शामिल किया गया था और है?
  8. आर्यों के आगमन से पहले भारत के आदिवासियों का धर्म क्या था?
  9. मीणाओं ने कब-कब, कौन-कौन सा धर्म स्वीकार किया?
  10. क्या हम मीणा दलित हैं?
  11. आरक्षण व्यवस्था क्या है? और आदिवासियों को आरक्षण कैसे मिला?
  12. आदिवासियों को आरक्षण दिलाने में किसका योगदान था और कौन विरोध में था?
  13. क्या मीणा शूद्र हैं?
  14. क्या मीणा सवर्ण हैं?
  15. मीणाओं को आरक्षण कैसे और किनके प्रयासों से मिला?
  16. मीणा समुदाय और आरक्षण के परिणाम।
  17. क्रीमी लेयर व्यवस्था जरूरी या गैर जरूरी।
नया सीखने हेतु सबसे पहले हमें अपने मन के ब्लैक बोर्ड को साफ करना होगा।

  • मेरा विनम्र आग्रह है कि इन सभी सवालों पर मंथन करने या सही उत्तर जानने से पहले हमें अपने मन के ब्लैक बोर्ड को साफ करना होगा।
  • जो कुछ हमारे मस्तिष्क पर पहले से जमा है, जब तक उसको साफ करके हम नयी इबारत लिखने हेतु जगह नहीं बनायेंगे, बोर्ड पर लिखा हुआ समझना बहुत मुश्किल है।
  • इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि आप जो जानते हैं, वह सब गलत है और उसे अपने मन से हमेशा को हटा दें। मैं ऐसी हिमाकत नहीं कर सकता।
  • मेरा सिर्फ इतना सा निवेदन है कि जब तक मुझे सुनें अपने मन को पूर्वाग्रहों से मुक्त कर लें। सुनने के बाद फिर अपने आप से पूछें और चिंतन करें, जो स्वीकारने योग्य हो उसे स्वीकारें। शेष को मन से निकाल कर फेंक दें।

हम मीणाओं से जुड़े उपरोक्त सवालों के जवाब तलाशने से पहले कुछ मूलभूत बातों पर चर्चा कर लेते हैं!

सबसे जरूरी बात कोई भी फेसबुक ग्रुप सीक्रेट नहीं है।
  • -जैसा कि मैंने एक इमेज पोस्ट डालकर बताया था कि राष्ट्रीय आदिवासी मीना संघ-(RAMS) ग्रुप में गैर मीणा तथा गैर आदिवासी लोग शामिल हैं। जो तीन लोगों के नाम की इमेज पोस्ट मैंने पेश की लोग वे क्रमश: 2016, 2017 और 2020 से ग्रुप में शामिल होकर इस ग्रुप पर निगरानी रखे हुए थे।
  • इनके अलावा भी इस ग्रुप में अजा, ओबीसी और अनारक्षित वर्गों के लोग इस ग्रुप में शामिल हैं।
  • अत: हम सबको इस बात को ठीक से समझना होगा कि इस ग्रुप के या किसी भी फेसबुक ग्रुप के प्राइवेट या सीक्रेट ग्रुप होने का कोई अर्थ नहीं हैं।
  • इसलिये पहला निवेदन: संवाद करते समय हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिये। हमें पूरी सजगता से संवाद करना चाहिये।
क्या हम किसी आपराधिक षडयंत्र के बारे में कोई चर्चा करते हैं?
  • -मुझे नहीं लगता कि हम किसी भी ग्रुप में किसी पार्टी, कौम या धर्म के विरुद्ध किसी आपराधिक षडयंत्र के बारे में कोई चर्चा करते हैं। न ही हमें ऐसी कोई चर्चा करनी चाहिये। क्योंकि ऐसा करना अपराध है। अत: संविधान के दायरे में रहकर खुलकर बात करनी चाहिये।

अंतत: हमें संसद का समर्थन हासिल करना:
  • अंतत: हमें हमारी समस्याओं के लोकतांत्रिक और संवैधानिक समाधान हेतु हमारी संसद का रुख करना होता है। हम जानते हैं कि संसद में सभी समुदायों, धर्मों और दलों के लोग होते हैं, जिनके सामने अपनी बात रखकर और उन्हें सहमत करके ही हम संसद का समर्थन हासिल कर सकते हैं। ऐसे में गुप्त मंत्रणाओं का कोई औचित्य नहीं है।

लोक सेवक आचरण संहिता से बंधे होते हैं:
  • केवल इस ग्रुप में ही नहीं, बल्कि सभी अन्य ग्रुप्स में  शामिल सदस्यों में और सोशल मीडिया पर सक्रिय अधिकतर लोग किसी न किसी सरकारी विभाग में लोक सेवक हैं। जो आचारण संहिता से बंधे हुए हैं। ऐसे में उनके द्वारा राजनीतिक दलों के नाम को लेकर विमर्श करना या असंगत बातें लिखना मेरी राय में उनके हित में नहीं है। इसके बावजूद हमारे लोग मानते नहीं हैं और जब उनके खिलाफ कार्यवाही होती है तो सरकार या मनुवादियों को कोसते हैं। यह दोहरा चरित्र आत्मघाती है।

मीणा समुदाय की दशा और दिशा पर चर्चा करने से पहले कुछ और भी बातें समझनी होंगी।

हमारे चिंतन का विषय किसी प्रदेश या क्षेत्र तक सीमित नहीं हो सकता।
  • जैसे हम भारत के किसी एक जिले, राज्य या किसी क्षेत्र विशेष में नहीं रहते हैं, बल्कि वर्तमान में सम्पूर्ण भारत में निवास करते हैं। तकरीबन देश के हर राज्य में हम सेवा दे रहे हैं। कुछ ऐतिहासिक कारणों से भी हमारे समुदाय के लाखों लोग अन्य राज्यों में निवास करते हैं! अत: हमारे चिंतन का विषय किसी प्रदेश या क्षेत्र तक सीमित नहीं हो सकता।
यहाँ मैं बताना चाहता हूँ कि-
  • भारत में 706 जनजातियों में से हम एक जनजाति हैं।
  • भारत में 706 जनजातियों का अस्तित्व मात्र 7-8 फीसदी है।
  • सभी 706 जनजातियां भी एकजुट नहीं हैं। जिसके भी अपने-अपने कारण हैं।
  • सभी 706 जनजातियां भारत के आदिवासियों की वंशज नहीं हैं।
  • अर्थात जनजातियों की सूची में गैर-आदिवासी जातियों को शामिल किया हुआ है!
  • भारत के आदिवासी जो वास्तव में भारत के मूलवासी हैं-वर्तमान में उनमें से अधिसंख्य किसी न किसी धर्म के अनुयाई हैं। जिनमें से अधिकांश हिंदू धर्म में शामिल हैं। कुछ मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि धर्मों में शामिल हैं। मगर हैं सब आदिवासियों के वंशज।
  • आदिवासियों के विभिन्न धर्मों में शामिल होने का अपना-अपना इतिहास रहा है।
  • कुछ लोग आदिवासियों के लिये पृथक धर्म की मांग कर रहे हैं। जिनमें 10 महिने पहले तक मैं भी शामिल था। मैं भी भ्रमित हो गया था।
  • हमारी भटकन का मूल कारण है-जुमलेबाजी और जुमलेबाज।

भारत में जुमलेबाज कौन है? सारे लोग एक स्वर में एक शख्स और पार्टी का नाम लेते हैं। मगर यह पूरा सच नहीं है। हकीकत में हम सब जुमलेबाज हैं। विश्वास नहीं है तो जानिये-
  • 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता'-जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है, वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।
  • -'यत्र जामयः शोचन्ति तत् कुलम् आशु विनश्यति, यत्र तु एताः न शोचन्ति तत् हि सर्वदा वर्धते।'-जिस कुल में स्त्रियाँ कष्ट भोगती हैं ,वह कुल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और जहाँ स्त्रियाँ प्रसन्न रहती है वह कुल सदैव फलता फूलता और समृद्ध रहता है । (परिवार की पुत्रियों, बधुओं, नवविवाहिताओं आदि जैसे निकट संबंधिनियों को ‘जामि’ कहा गया है ।)
  • 'हिन्दी—चीनी भाई—भाई'
  • 'हिंदू—मुस्लिम भाई—भाई' इस जुमले की स्थापना हेतु —'ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान' गाया और गवाया गया।
  • 'विद्या की देवी सरस्वती'
  • 'गरीबी हटाओ' का नारा!
  • 'इंदिरा इंज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा'
  • 'आरक्षण हटाओ, देश बचाओ'
  • 'मनुवादी भगाओ, देश बचाओ'
  • 'मनुवाद मुक्त भारत'
  • 'सारे हिंदू एक समान।'
  • 'तिलक-तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार'-कुछ समय बाद यह जुमला बदल गया—'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णू-महेश है।'
  • 'कांग्रेस का हाथ, गरीब के साथ'
  • भजपा के सत्ता में आने पर-'हर भारतीय को 15-15 लाख मिलेंगे।'
  • 'आर्यवर्त भारत', 'हिंदुस्तान' और 'हिंदुस्थान'
  • 'राष्ट्रपिता महात्मागांधी'
  • 'संविधान निर्माता -बाबा साहब अम्बेड़कर'- 'संविधान सभा'की प्रथम बैठक 09 दिसंबर 1946 को हुई! "प्रारूप समिति"(ड्राफ्टिंग कोमिटी) जिसका गठन 29 अगस्त 1947 को हुआ था। संविधान सभा को 04 नवम्बर 1948 को संविधान का अंतिम प्रारूप पेश कर दिया। अंततः 26 नवम्बर 1949 को संविधान को अपनाया (Adapt)गया और 26 जनवरी 1950 को संविधान पूर्णतया लागू (Enact) कर दिया गया।
  • 'उदारवाद'
  • 'वैश्वीकरण'
  • 'कांग्रेस मुक्त भारत'
  • 'सबका साथ, सबका विकास'
  • 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास'
  • 'मैं आदिवासी हूं। 2021 की जनगणना में मेरा धर्म है-आदिवासी।'
  • 'एक तीर, एक निशान, सारे आदिवासी एक समान'
  • मीणा उवाच—'शूद्र नहीं हम, क्षत्रिय हैं'
  • 'जय हिंद', जयश्रीराम, जयभीम, जयमीनेश, जयमूलनिवासी, जयआदिवासी, जयमाताजी। नमो-नमो, नमोबुद्धाय'
  • सबसे बड़ा जुमला तो संविधान का अनुच्छेद 14 है जो कहता है कि-
'कानून के सामने सबको समान समझा जायेगा और सभी को कानून का समान संरक्षण प्रदान किया जायेगा'
  • क्या इस देश में एक जैसी शिक्षा, एक जैसा उपचार और एक जैसा सम्मान मिलता है?
  • क्या किसी देशभक्त राजनीति दल, सामाजिक या सांस्कृतिक संगठन ने कभी राष्ट्रीय स्तर पर आवाज उठायी?
  • आरक्षण भी एक जुमला ही है। आरक्षण का मकसद नौकरी देना या करोपति बनाना कभी नहीं था। बल्कि मूल मकसद तो वंचित वर्गों का सशक्त प्रतिनिधित्व की स्थापना था। क्या वह 70 साल में स्थापित हो पाया?
  • सबसे घातक जुमला है 'जो हिंदू नहीं, वो पाकिस्तान चला जाये।'
कभी सोचा, कभी विचार किया कि इन जुमलों के पीछे कौन है? इसका जवाब जानने के बाद सिर्फ देश बचेगा जुमलेबाज भागते फिरेंगे, लेकिन हम देश बचाने के नाम पर जुमलेबाजों को बचाने में लगे हुए हैं।

अब हम एक-एक सवाल पर चर्चा करते हैं?

  1. क्या मीणा भारत के मूलवासियों के वंशज हैं?—हां
  2. क्या भारत के मूलवासी ही आदिवासी कहलाते हैं?—हां
  3. क्या संविधान लागू होने से पहले मीणाओं को आदिवासी दर्जा हासिल था?—हां
  4. क्या संविधानसभा में आदिवासियों को ही अजजा सूची में शामिल करने पर सहमति बनी थी?—नहीं
  5. संविधानसभा में आदिवासियों को ही अजजा सूची में शामिल क्यों नहीं किया गया?—अम्बेड़कर के विरोध के कारण।
  6. अम्बेड़कर ने विरोध क्यों किया?—इसका वास्तविक जवाब तो उन्हीं को ज्ञात था। मैं कुछ साक्ष्यों और पिरिस्थितियों के मुताबिक जवाब दे सकता हूं। जरूरी नहीं मेरा जवाब सही हो। अम्बेड़कर ब्राह्मणों के हाथ की कठपुतली थे। जो उनसे कहा जा रहा था, वही वे कर रहे थे।
  7. क्या वास्तव में अजजा की सूची में केवल आदिवासियों को ही शामिल किया गया था और है?
  8. आर्यों के आगमन से पहले भारत के आदिवासियों का धर्म क्या था?—ऐतिहासिक जवाब जानने हेतु आचार्य चतुरसेन का उपन्याय वयं रक्षाम: पढें।
  9. राक्षस: जहॉं तक राक्षस शब्द की उत्पत्ति का सवाल है तो आचार्य चुतरसेन द्वारा लिखित महानतम ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति ‘वयं रक्षाम:’ और उसके खण्ड दो में प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों पर गौर करें तो आर्यों के आक्रमणों से अपने कबीलों की सुरक्षा के लिये भारत के मूलवासियों द्वारा हर एक कबीले में बलिष्ठ यौद्धाओं को वहॉं के निवासियों को ‘रक्षकों’ के रूप में नियुक्ति किया गया। ‘रक्षक समूह’ को ‘रक्षक दल’ कहा गया और रक्षकों पर निर्भर अनार्यों की संस्कृति को ‘रक्ष संस्कृति’ का नाम दिया गया। यही रक्ष संस्कृति कालान्तर में आर्यों द्वारा ‘रक्ष संस्कृति’ से ‘राक्षस प्रजाति’ बना दी गयी।
  10. मीन?: इतिहासकारों का मत है कि आर्यों के भारत में आगमन से पूर्व यहॉं के मूलवासी यानी आदिवासियों का भारत के जनपदों (राज्यों) पर सम्पूर्ण स्वामित्व, अधिपत्य और शासन था। इन्हीं जनपदों में मछली के भौगोलिक आकार का एक मतस्य नामक जनपद भी बताया जाता है, जिसके ध्वज में मतस्य अर्थात् मछली अंकित होती थी-मीणा उसी जनपद के कबीले वंशज हैं। चालाक आर्यों द्वारा मीणाओं को विष्णू के मतस्य अवतार का वंशज घोषित करके आर्यों में शामिल करने का षड़यंत्र रचा गया और पिछले चार दशकों में जगह-जगह मीन भगवान के मन्दिरों की स्थापना करवा दी। जिससे कि मीणाओं का आदिवासी स्वाभिमान चकनाचूर करके उन्हें आर्यवंशी घोषित किया जा सके। जिसमें एक सीमा तक वे सफल भी हुए।
  11. मीणाओं ने कब-कब, कौन कौन सा धर्म स्वीकार किया?-अन्य धर्मों को स्वीकारे जाने की तारीखें तो मुझे ज्ञात नहीं, लेकिन अंग्रेजों द्वारा अंतिम बार करवायी गयी जनगणना में मीणा हिंदू धर्म में नहीं गिने गये थे। और 1951 में जनगणना से पहले आदिवासी शब्द को संविधान से डिलीट कर दिया गया था। अत: देश के तकरीबन समस्त आदिवासियों को हिंदू धर्म में गणना की गयी। तब से आधिकारिक तौर पर मीणा हिंदू हो गये। जैसे पिछले 4 दशक में मीणा मीनवंशी बना दिये हैं। ठीक वैसे ही आदिवासी हिंदू बना दिये गये।
  12. क्या हम मीणा दलित हैं?
  13. आरक्षण व्यवस्था क्या है? और आदिवासियों को आरक्षण कैसे मिला?
  14. आदिवासियों को आरक्षण दिलाने में किसका योगदान था और कौन विरोध में था?
  15. क्या मीणा शूद्र हैं?
  16. क्या मीणा सवर्ण हैं?
  17. मीणाओं को आरक्षण कैसे और किनके प्रयासों से मिला?
  18. मीणा समुदाय और आरक्षण के परिणाम।
  19. क्रीमी लेयर व्यवस्था जरूरी या गैर जरूरी।
    ..........

Thursday 9 January 2020

जो मित्र बार-बार अण्डर ग्राउण्ड हो जायें

जो मित्र एन वक्त पर, जब उनकी सबसे अधिक जरूरत हो बार-बार अण्डर ग्राउण्ड हो जायें, क्या वे विश्वास के ​काबिल हो सकते हैं?-09.01.2020

Wednesday 8 January 2020

MOST Must Be MOST (maximum) in everywhere, But Unfortunately MOST is MUST.

MOST Must Be MOST (maximum) in everywhere, But Unfortunately MOST is MUST. [MOST को सर्वत्र MOST (सर्वाधिक) होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से MOST मस्त (MUST) है!]-आदिवासी ताऊ-08.01.2020.

प्रधानमंत्री जी क्या भविष्य में जब-जब भी घुसपैठिये या आतंकी देश में घुसेंगे तो क्या हर बार NPR/NRC की जाती रहेगी जायेगी? फिर आपकी क्या जरूरत है?

प्रधानमंत्री जी क्या भविष्य में जब-जब भी घुसपैठिये या आतंकी देश में घुसेंगे तो क्या हर बार NPR/NRC की जाती रहेगी जायेगी? फिर आपकी क्या जरूरत है?


हमारे प्रबुद्ध मित्र जी जो विधि स्नातक भी हैं का कहना है कि—


''....NRC को लेकर सबका अपना अपना दृष्टिकोण है। सरकार का कहना है कि देश में काफी बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए हैं जो देश के संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं और आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं। और इससे डेमोग्राफिक परिवर्तन भी हो रहा है धीरे-धीरे। अंत:उनकी पहचान कर के उन्हें नागरिकों से अलग किया जाए तथा जैसे संभव हो, उनके देश पहुंचाया जाए। ताकि देश के संसाधन नागरिकों को ही काम आएं। दूसरि कक्ष जो है वो ये कि इससे‌ परेशानी तो आएंगी, लोगों के पास दस्तावेज भी नहीं है आदि आदि। तय आपको करना है कि आप किस तरफ हैं।''

सरकार के तर्क शुरू से ही प्राथमिक शाला के बच्चों जैसे रहे हैं। जैसे किसी छोटे बच्चे का पैन गुम हो जाने पर वह अपने अध्यापक से जिद करे कि कक्षा के सभी बच्चों की तलाशी ली जाये। तलाशी के बाद भी पैन नहीं मिलता है फिर भी बच्चे की जिद कायम रहती है। सरकार को नोटबंदी में काला धन नहीं मिला और कितनी ही NPR/NRC कर लो घुसपैठियों तथा आतंकियों को पहचान करना या उनको रोकना असंभव है।

आतंकियों को या घुसपैठियों को ढूंढने का क्या यही एक मात्र तरीका और रास्ता है कि देश के हर एक नागरिक को घुसपैठिया, संदिग्ध और आतंकी मानकर सबकी पहचान प्रमाणित की जाये?

यदि एक मात्र रास्ता है तो फिर देश की गुप्तचर संस्थाओं, पुलिस और सेना के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े होना लाजिमी हैं।

70 सालों से लगातार भारत में आतंकी और घुसपैठिये प्रविष्ट होते रहे हैं। मोदी सरकार के दौरान भी यह सिलसिला रुका नहीं है। इस बात की कोई गारण्टी भी नहीं है कि आगे यह सिलसिला रुक ही जायेगा।

ऐसे में सवाल यह भी उठना स्वाभाविक है कि भविष्य में जब-जब घुसपैठिये या आतंकी देश में घुसेंगे तो क्या हर बार यही तरीका अपनाया जाएगा?

देश के लोगों को कतार में खड़ा करके अपने नागरिकता प्रमाणों को लेकर खड़ा होना होगा?

ऐसे में सवाल तो यह भी है कि जब हर पर नागरिकों को ही अपने आप को नागरिक सिद्ध करना है तो ऐसी सरकार एवं सरकारी व्यवस्था की जरूरत ही क्या है?
नोट: यह लाइव पूरा नहीं हो सका क्योंकि नेटवर्क अचानक चला गया।
आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, 9875066111 (Between 10 to 18 Hrs), 08.12.2019.

https://www.facebook.com/NirankushWriter/videos/1010022976024133/

Tuesday 7 January 2020

नागरिकता पर सवाल उठाने वाली सरकार हम देशवासियों से है या हम देशवासी सरकार से हैं?

सरकार हम देशवासियों से है या हम देशवासी सरकार से हैं? हमें इस बात को गम्भीरता से समझना होगा। सरकार का 5 साल को निर्वाचन करने वाले देशवासियों की नागरिकता पर सवाल उठाने वाली सरकार को ही उठ जाना होगा।-07.01.20

मौनी मित्रो ससम्मान विदा लीजिये

यदि अधिकतम मौनी मित्रों को मेरी वाल की नोटिफिकेशन नहीं दिखती या नहीं मिलती है तो उनका फ्रेंडलिस्ट में बने रहना निरर्थक है। प्लीज ससम्मान विदा लीजिये। 800 लोग वेटिंग में हैं।-आदिवासी ताऊ, 07.01.2020

मैं JNU में हुई हिंसा की कड़े शब्दों में भर्तस्ना करता हूँ।

मैं JNU में हुई हिंसा की कड़े शब्दों में भर्तस्ना करता हूँ। साथ ही संविधान, लोकतंत्र और कानून का मखौल बनते हुए देखने वालों की भी निंदा करता हूँ? कितने FB फ्रेंड सहमत हैं?-आदिवासी ताऊ, NC-HRD (MOST VOICE), 07.01.2020, 9875066111

Monday 6 January 2020

अतीत के गौरव के सहारे कोई कौम या समुदाय आखिर कब तक अपने आप को खुशफहमी में रख कर आज की चुनौतियों का सामना कर सकता है?

अतीत के गौरव के सहारे कोई कौम या समुदाय आखिर कब तक अपने आप को खुशफहमी में रख कर आज की चुनौतियों का सामना कर सकता है? आखिर इन बातों से क्या हासिल होने वाला है?
-आदिवासी ताऊ, 06.01.2020

वंचितों की एकता

वंचितों की एकता हेतु हम गत 70 सालों से लगातार सक्रिय हैं, मगर हमारी एकता की हकीकत हम जानते हैं! यदि हम वाकयी वंचितों/MOST की सच्ची एकता के आकांक्षी हैं तो इस दिशा में एक कदम बढ़ाने का सही वक्त है। आपका सपरिचय स्वागत है।-आदिवासी ताऊ-06.01.2020

Sunday 5 January 2020

सामूहिक कार्य करना अवश्य सुनिश्चित किया जाये।

निजी तौर पर, जिसको जो भी पसन्द हो करें, मगर संवैधानिक हकों की रक्षा हेतु कुछ न कुछ ऐसा सामूहिक कार्य करना अवश्य सुनिश्चित किया जाये। जिसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम निकलें।
-आदिवासी ताऊ, 05.01.20, 9875066111

आम लोगों का हक मारकर करोड़ों जमा करो और कुछ लोगों के लिये कुछ हजार अनुदान करो, क्या यह भी 'पे बैक टू सोसायटी' है?

आम लोगों का हक मारकर करोड़ों जमा करो और कुछ लोगों के लिये कुछ हजार अनुदान करो, क्या यह भी 'पे बैक टू सोसायटी' है? 05.01.2020

क्या केवल नगद अनुदान करना ही "पे बैक टू सोसायटी" का प्रमाण है?

क्या केवल नगद अनुदान करना ही "पे बैक टू सोसायटी" का प्रमाण है?-03.01.2020

जीवन का अंतिम लक्ष्य आनंद नहीं, अपितु सम्पूर्णता है।

जीवन का अंतिम लक्ष्य आनंद नहीं, अपितु सम्पूर्णता है।
-आदिवासी ताऊ-05.01.2020, 8561955619

Saturday 4 January 2020

¿विचारणीय गम्भीर सवाल?

¿विचारणीय गम्भीर सवाल?
जो विचार संविधान के खिलाफ हैं, वो देशद्रोह है, या जो विचार संघ के हिंदुत्व के खिलाफ हैं, वो देशद्रोह है? पूर्वाग्रह रहित विमर्श हेतु देशभक्तों का स्वागत।
-आदिवासी ताऊ-04.01.2020, 9875066111

Friday 3 January 2020

2014 से लगातार घटिया षड्यंत्र

मुझ जैसे अराजनीतिक व्यक्ति को निपटाने हेतु जिसके द्वारा 2014 से लगातार घटिया षड्यंत्र किये जा रहे हैं। वह राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के विरुद्ध क्या कुछ नहीं करता होगा। जबकि मैं राजनीतिक रूप से उसके लिए कोई चुनोती पेश नहीं कर सकता!-03.01.2020

मुखौटाधारी वो चेहरे जो संदिग्ध और लगातार निष्क्रिय हैं।

मुखौटाधारी वो चेहरे जो संदिग्ध और लगातार निष्क्रिय हैं। आज से उनको अनफ्रेंड करूंगा। बेशक मुझे फेसबुक आईडी बन्द करनी पड़े, लेकिन ऐसे लोगों को मित्रता सूची में शामिल रखना खुद का ही अपमान है, जो अब स्वीकार नहीं।-03.01.2020

आनन्द रहित जीवन निरर्थक, निष्फल और उबाऊ बन जाता है।

बेशक आनंद जीवन का प्रथम या अंतिम लक्ष्य नहीं है, लेकिन आनन्द रहित जीवन निरर्थक, निष्फल और उबाऊ बन जाता है।
-आदिवासी ताऊ-03.01.2020, 8561955619

Thursday 2 January 2020

आदिवासी वही हो सकता है, जिसने आदिवासी कुल में जन्म लिया हो!

इतिहास में कोई एक उदाहरण मिल सकता है, जब कोई गैर आदिवासी, आदिवासी बन गया हो? नहीं, यह असंभव है, क्योंकि आदिवासी वही हो सकता है, जिसने आदिवासी कुल में जन्म लिया हो!
आदिवासी ताऊ-02.01.2020

अपने फोटो लगायें। अन्यथा मजबूरन मुझे उन्हें हटाना होगा!

जिन मित्रों ने अपने चेहरे पर नकाब लगा रखी है या जो बिना फोटो हैं, कृपया अपने फोटो लगायें। अन्यथा मजबूरन मुझे उन्हें हटाना होगा!—02.01.2020

आदिवासी कोई धर्म या पंथ नहीं, बल्कि एक नस्ल है

मित्रो कोई भी आदिवासी हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, बुद्ध या जैन आदि तो बन सकता है, लेकिन फिर भी रहेगा वो आदिवासी ही, क्योंकि माता और पिता बदले नहीं जा सकते। आदिवासी कोई धर्म या पंथ नहीं, बल्कि एक नस्ल है, लेकिन कोई भी गैर आदिवासी कभी भी और कैसे भी आदिवासी नहीं बन सकता।-02.01.2020

वर्तमान बिगड़ेगा तो भविष्य कैसे सुधर सकता है?

भूतकाल जो लौटाया नहीं जा सकता। भविष्य जो अनिश्चित ही है। इनके लिये सुनिश्चित वर्तमान को दांव पर लगाने वाली पीढ़ी चिंतन करें। वर्तमान बिगड़ेगा तो भविष्य कैसे सुधर सकता है।
-आदिवासी ताऊ, 9875066111, 02.01.2020

क्या हम तैयार हैं? NPR के बाद NRC तय है।

क्या हम तैयार हैं? NPR के बाद NRC तय है। यदि वोटर/राशन कार्ड, आधार, मार्कशीट, पासपोर्ट, PAN कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस आदि को भारत के नागरिक होने का सबूत/प्रूफ नहीं माना गया तो कैसे सिद्ध करेंगे?-आदिवासी ताऊ, 9875066111, 02.01.2019

जिन मित्रों ने अपने चेहरे पर नकाब लगा रखा है, वे कृपया चेहरे से नकाब हटायें और अपने मुखड़े के शौर्य के दर्शन करायें।

जिन मित्रों ने अपने चेहरे पर नकाब लगा रखा है, वे कृपया चेहरे से नकाब हटायें और अपने मुखड़े के शौर्य के दर्शन करायें।-02.01.2020

गढे मुर्दों को जिंदा करने के बजाय, जिंदों में जान फूंकने की कोशिश करें।


गढे मुर्दों को जिंदा करने के बजाय, जिंदों में जान फूंकने की कोशिश करें।
आदरणीय @Shrikumar Soni जी आप लिखते हैं कि ''डॉक्टर साहब इस देश के बहुत सारे संगठन अलग-अलग शौर्य दिवस मनाते हैं ।हमारे अधिकांश त्यौहार वास्तव में शौर्य दिवस ही हैं ।दशहरा भी शौर्य दिवस है होलिका भी शौर्य दिवस है और अभी लेटली 6 दिसंबर भी शौर्य दिवस के रूप में मना रहे हैं कुछ लोग। और इन शौर्य दिवसों से दिक्कत है हम अपमानित होते हैं हमारे घाव करेदे जाते हैं। हम चाहते हैं जो कष्ट जो अपमान हम लोग उठा रहे हैं उसका थोड़ा सा नमोना दुश्मन को भी मिलना चाहिए इसलिए 1 जनवरी हमारे लिए शौर्य दिवस है'' बेशक तकनीकी तौर पर आपकी कलम सत्य की बात करती हुई प्रतीत होती है, लेकिन अनेक बार चाहकर भी सत्य नहीं बोलना या बेवजह सत्य नहीं बोलना, जनहित में सत्य से बड़ा सत्य हुआ करता है। इस संदर्भ में, मैं कुछ बातें कहना चाहता हूं।
पहली बात तो यह कि व्यक्तिगत रूप से मुझे किसी के किसी दिवस मनाने या नहीं मनाने से किसी प्रकार का कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन हमारा वंचित समुदाय जिन कारणों से कमजोर होता है, उन पर लिखना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूं। जो जारी रहेगा।

दूसरी बात यह कि कालांतर में कुछ असत्यों के जनमानस ने सत्य दिल स्वीकार कर लिया है और उनके साथ जीना शुरू कर दिया है और कुछ सत्यों को असत्य मानकर जीना शुरू कर दिया है। इस कारण उन्हें उन दिवसों को मनाने से किसी प्रकार की कोई पीड़ा या अपमान की अनुभूति नहीं होती है! हां कोई 00.01 फीसदी लोग हैं, जो इस अपमान की अनुभूति से पीड़ित होने का सोशल मीडिया के जरिये अहसास कराते रहते हैं। हकीकत में उन्हें भी कोई पीड़ा नहीं है। क्योंकि मैं उनके घरों तक जाकर आया हूं और हकीकत जानता हूं। उनके प्रवेशद्वार पर गनेश स्थापित होते हैं। वास्वत में यह उनकी आस्था का सवाल बच चुका है। अत: मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है। मगर इन लोगों को इस बात का अहसास क्यों नहीं होता कि उनकी कौम के संवैधानिक हकों को सरेआम कोई और छीन रहा है। शायद यह जरूरी नहीं है या संविधान का ज्ञान नहीं है? कारण कोई भी हो मगर दोनों ही स्थिति दु:खद हैं।

तीसरी बात यह कि यदि हम पुराने जख्मों को कुरेदेंगे तो उन्हें भरने की जिम्मेदारी भी हमारी ही होगी। क्या जख्मों को कुरेदने वाले इन जख्मों को भरने में सक्षम हैं? यदि जख्मों को भर नहीं सकते तो कुरेदने का अपराध क्यों? इससे क्या हासिल होगा? क्या किसी मृत इंसान को जिंदा किया जा सकता है?

चौथी बात यह कि यदि हम पुराने मुर्दों को कुरेदने में जितनी ऊर्जा खर्च कर रहे हैं, इससे आधी सी भी ऊर्जा वंचितों को सकारात्मक रीति से एक करने में लगाते तो आज भारत की सत्ता वंचितों के हाथ में होती और तब किसी प्रकार का शौर्य दिवस मनाने की या दूसरों के शौर्य दिवस मनाने पर व्यथित होने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

पांचवीं बात यह कि अभी भी वक्त है कि गढ़े मुर्दों को जिंदा करने के आत्मघाती कदम उठाने के बजाय, हम जीते जागते, लेकिन सोये हुए इंसानों को जगायें, जो मुर्दों से कम नहीं हैं, मिलकर हम सब उनमें नफरत के बजाय सकारात्मक तथा सौहार्द की जान फूंकने की कोशिश करें। यदि हम वंचितों को जगा नहीं सकते तो कम से कम हम उन्हें दूसरों के खिलाफ उकसाकर एवं भड़काकर मौत के मुंह में तो नहीं धकेलें।

आदरणीय यदि हम मिलकर अपने लक्ष्य की ओर बढने का उपाय करेंगे तो ही हमें मंजिल मिलेगी। हम दूसरों को उकसाकर, दूसरों को मजबूत ही करते हैं, जो हमारे लिये आत्मघाती विचार है। याद रहे कौओं के कोंथने से भैंसे नहीं मरा करती।

EXTRA ADDED__>>>> अंत में आपको सच का आईना दिखाने के लिये आदिवासियों की पीड़ा को भी जोड़ने को मजबूर हूं कि ''1 जनवरी 1948 की अंतरिम सरकार में कानून मंत्री डॉ. भीमराव अम्बेड़कर थे, गृह मंत्री सरदार पटेलथे, जिन्होंने संविधान सभा में, जो तत्कालीन संसद भी थी, खरसावां हत्याकांड में मारे गए 30 हजार से अधिक आदिवासियों पर चर्चा तक नहीं की। बताइये इस दिन को किसके खिलाफ शर्म, शौर्य या काला दिवस मनाया जावे? साथ ही यह भी बतावें कि ऐसा करने से हमें क्या हासिल होगा?''
आगे आपकी मर्जी।
आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा
Please Join: 20-20 Mission 4 MOST
9875066111, 02.01.2020

क्या तकनीकी तौर पर, यह पता लगाने का कोई तरीका है कि वह कौन महाशय था?

शायद कल का मेरा लाइव सुनकर कोई एक मित्र छोड़ गया। क्या तकनीकी तौर पर, यह पता लगाने का कोई तरीका है कि वह कौन महाशय था?-02.01.2020

Wednesday 1 January 2020

एक कौम शौर्य दिवस मनाएगी तो हर एक कौम को यह हक होगा

यदि एक कौम शौर्य दिवस मनाएगी तो हर एक कौम को यह हक होगा कि वे अपने-अपने पूर्वजों के शौर्य दिवस मनायें। याद रहे हमारी जीत में हम किसी की हार के अपमान को जीवित करने का अपराध कर रहे हैं। यह सौहार्द के खिलाफ है। क्या यह उचित होगा?-01.01.2020

किसी के पूर्वजों के सम्मान को चोट पहुंचाकर हम उसे हमारा शुभचिंतक नहीं बना सकते

किसी भी व्यक्ति की आस्था तथा उसके पूर्वजों के सम्मान को चोट पहुंचाकर हम उसे हमारा शुभचिंतक नहीं बना सकते।-01.01.2020

अपनी आस्था के लिये जो चाहें पढ़ें, लेकिन संविधान को पढ़े बिना असली जागरूकता नहीं लायी जा सकती।

अपनी आस्था के लिये जो चाहें पढ़ें, लेकिन संविधान को पढ़े बिना असली जागरूकता नहीं लायी जा सकती।-01.01.2020

जयकारे होश छीनकर केवल जोश ला सकते



जयकारे होश छीनकर केवल जोश ला सकते

यदि गीता, रामायण, ब्रह्मा, विष्णु, राम, शिव, दुर्गा, भीम, एकलव्य, बिरसा आदि में से किसी एक या सबकी जय बोलने से देश में इंसाफ कायम हो सकता है तो इनकी जय बोलने में किसी को आपत्ति नहीं हो सकती। मगर कड़वा सच यह है कि जयकारे होश छीनकर केवल जोश ला सकते, जो गुलाम बनाने का एक मनोवैज्ञानिक तरीका है। याद रहे हमें गुलामी नहीं आजादी चाहिये और वह भी अपने स्वाभिमान के साथ। अतः जोहार (प्रकृति की जय हो) के अलावा किसी की भी जय बोलना, गुलामी स्वीकारने के सिवा कुछ भी नहीं। मगर कोई भी किसी की भी जय बोले हमें कोई आपत्ति नहीं, क्योंकि सबको निर्णय लेने का हक है। कोई जिये या घुट-घुट कर मरे, जीवन उसका अपना है।-आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, 20-20 Mission 4 MOST, 9875066111, 01.01.2019.

जो बात संविधान के खिलाफ है वो देश के भी खिलाफ है।

Amar Chand Meena जी जो बात संविधान के खिलाफ है वो देश के भी खिलाफ है। क्या कोई भी धर्म और, या जाति देश तथा संविधान से बढ़े हो सकते हैं? कृपया संविधान पढ़ना शुरू करें। आपके व्यक्तित्व का विकास होगा।-आदिवासी ताऊ-9875066111, 01.01.2020

Tuesday 31 December 2019

पहले हैं भाई Babulal Meena जी और दूसरे हैं युवा मित्र Devnath Nagavanshi Mulnivashi जी।

मेरी फेसबुक वाल के दो साथी ऐसे हैं, जिनके बारे में मुझे नहीं पता दोनों आपस में एक दूसरे से परिचित भी हैं या नहीं? मगर दोनों में एक समानता है—जनहित में अपनी बात पर अडिग रहना और वंचित समुदायों के हित में जो भी कहना है, उसे बिना लाग लपेट के निर्भीकतापूर्वक लिखना। बेशक कोई उनसे सहमत हो या नहीं, लेकिन सच को लिखने में संकोच नहीं करते। दोनों ही लोक सेवक हैं और दोनों ही सामाजिक न्याय के पेरोकार हैं। पहले सेवानिवृति के करीब हैं और दूसरे अभी युवा हैं। मगर इन दोनों का मेरी मित्रता सूची में बने रहना, मुझे अपने विचारों को बैलेंस करने के साथ-साथ इस बात की प्रेरणा देता भी है कि अन्य अनेक उन संजीदा मित्रों के साथ-साथ ये वो दो नाम हैं जो बेशक कितना ही संवेदनशील विषय हो, उस पर अपना मत ईमानदारी से अवश्य ही रखेंगे। एक बहुत बड़ी बात मैंने इन्हें कभी किसी को खुश करने हेतु/को लिखते हुए नहीं पढा। अभी इन दोनों के साथ मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत अधिक नजदीक नहीं हूं, लेकिन वैचारिक रूप से लगता है कि दोनों ही अपने आप में विशेष हैं। बेशक दोनों के विचार अभिव्यक्ति के तरीके में भिन्नता भी है। पहले हैं भाई Babulal Meena जी और दूसरे हैं युवा मित्र Devnath Nagavanshi Mulnivashi जी। इन दोनों के उज्ज्वल और स्वस्थ भविष्य की अनंत शुभकामनाएं। मुझे खुशी है कि आप ने मुझे अपनी मित्रता सूची में जगह दी हुई है। अभी तक के सार्वजनिक संवाद के मुझे उम्मीद है कि आप दोनों वंचित समुदायों की एकता हेतु संयुक्त विचारधारा तथा संयुक्त नेतृत्व की मुहिम के अग्रणी समर्थक सिद्ध होंगे और हम देशभर में दूसरों को भी इस बात के लिये सहमत करने में सफल होंगे।
-आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, 9875066111, 31.12.2019.

वर्ष 2020 के लिये मेरी दिली कामना

वर्ष 2020 के लिये मेरी दिली कामना है कि MOST/वंचित समुदाय सकारात्मक रूप से इस तरह से एकजुट और सशक्त हो जाये कि उसके हकों को छीनने से पहले कोई भी 100 बार सोचे। मगर यह लिखने से कुछ नहीं होगा। MOST को एकजुट करना/होना होगा।-31.12.2019

Monday 30 December 2019

हमें मौलिकता को समझने की समझ पैदा करनी होगी।

हम सीखते कम और नकल अधिक करते हैं। जिनकी नकल करते हैं, उन्होंने भी किसी की नकल की हुई होती है। हमें मौलिकता को समझने की समझ पैदा करनी होगी। अन्यथा 70 साल से जारी भेड़चाल के साथ मनगढ़ंत शूद्रत्व के अंधकूप में गिरेंगे और मरेंगे।

Sunday 29 December 2019

हम शूद्र नहीं, बल्कि सभी भारत के सम्मानित नागरिक हैं

जिन मित्रों का मकसद संविधान को मटियामेट करके वंचितों को शूद्र बनाना तथा मनुस्मृति का प्रचार-प्रसार करना है, वे मुझे अनफ्रेंड कर सकते हैं। क्योंकि हम शूद्र नहीं, बल्कि सभी भारत के सम्मानित नागरिक हैं।-आदिवासी ताऊ 9875066111, 29.12.2019

दुकानदार नहीं, बल्कि हम, यानी ग्राहक ही दोषी हैं।

मेरी इच्छा के विरुद्ध कोई दुकानदार (मनुवादी, बामणवादी, गांधीवादी, हिंसावादी आदि) मुझे अपना उत्पाद नहीं बेच सकता। हकीकत में गलत उत्पाद या विचार ग्रहण करने के लिए दुकानदार नहीं, बल्कि हम, यानी ग्राहक ही दोषी हैं।-आदिवासी ताऊ, 29.12.19

MOST/वंचितों में सर्वस्वीकार्य एक ही समानता है-

MOST/वंचितों में सर्वस्वीकार्य एक ही समानता है-

"हम सब संवैधानिक हकों से वंचित हैं।"

क्या यह समानता एकता के लिये पर्याप्त नहीं है? जो शूद्रत्व और DNA जैसी मनगढ़ंत कहानियां गढ़ी जा रही हैं।
आदिवासी ताऊ, 29.12.2019

भोंकने वालों के सुर में सुर मिलना, भोंकने वालों को बढ़ावा देना ही है।

भोंकने वालों के सुर में सुर मिलना, भोंकने वालों को बढ़ावा देना ही है।-29.12.2019

जिन्हें देशद्रोही कहने में भी दिक्कत नहीं होनी चाहिये!

जिनके विचार स्वीकार नहीं, उनका अपमान क्यों? असहमति का दूसरा नाम ही तो लोकतंत्र है। असहमति को अपमानित करने वाले अलोकतांत्रिक और अंततः असंवैधानिक व्यवस्था के पोषक हैं। जिन्हें देशद्रोही कहने में भी दिक्कत नहीं होनी चाहिये!-आ. ताऊ-29.12.20119

सर्वस्वीकार्य सहमति के पुख्ता आधार तलाशने होंगे।

एक-दूसरे पर अपने विचार या नेतृत्व थोपे बिना MOST/वंचितों को एकता कायम करने वाले सर्वस्वीकार्य सहमति के पुख्ता आधार तलाशने होंगे। ताकि हम एकजुट होकर संवैधानिक हक हासिल कर सकें।-आदिवासी ताऊ, 29.12.2019, 9875066111

मे नही: ये शब्द किसी हिंदी शब्दकोष में किसी ने देखे-पढ़े हों तो बताने का कष्ट करें

मे नही: ये शब्द किसी हिंदी शब्दकोष में किसी ने देखे-पढ़े हों तो बताने का कष्ट करें। विशेष रूप से वे मित्र जो इनका उपयोग करते हैं।
-आदिवासी ताऊ 29.12.2019

Vijendra Singh Kohinoor जी अपूर्वाग्रही व्यक्तित्व के मालिक, जिनकी तथ्यों और विचाराभिव्यक्ति पर बारीक तथा गहरी पकड़ है।

Vijendra Singh Kohinoor जी अपूर्वाग्रही व्यक्तित्व के मालिक, जिनकी तथ्यों और विचाराभिव्यक्ति पर बारीक तथा गहरी पकड़ है। जो बिना जानें किसी तथ्य को कभी नहीं स्वीकारते, मगर संवाद तथा व्यवहार में शिष्टता, नम्रता, संयम, धैर्य, अनुशासन एवं समयबद्धतता, जिनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा है। युवा जोश के साथ-साथ, चीजों तथा हालातों की समझ के मामले में गहन परिपक्वता की झलक मिलती है।

डॉ. अम्बेड़कर के वैश्विक व्यक्तित्व की आड़ लेकर देशभर में संचालित ढोंग से पूरी तरह से मुक्त, किंतु एक सच्चे संविधानवादी और अम्बेड़करवादी व्यक्तित्व के भी धनि हैं। जो वंचितों/MOST के हितार्थ, जयकारे लगाने वाले अंधभक्तों, कट्टरपंथियों और बामणवादियों को खुले मन से सुनने, पढने तथा विमर्श करने को तत्पर और सहमत रहते हैं।

संविधान लागू होने के बाद भी हकों से वंचित, वंचित/MOST समुदायों के हितार्थ, हम वंचितों द्वारा प्रस्तावित एवं संचालित संयुक्त विचारधारा, संयुक्त नेतृत्व, सामूहिक योगदान, सामूहिक उत्तरदायित्व और संयुक्त निगरानी व्यवस्था के मुखर पेरोकार तथा सहयोगी हैं।

मेरा अनुभवजन्य मत है कि यदि हम वंचितों को देश में इंसाफ कायम करना है तो देशभर में ऐसे लोगों की तलाश कर, बड़ी टीम बनाना बहुत जरूरी है। आप वाकयी मेरी फेसबुक मित्रता सूची में ही नहीं, मेरे सोशल मीडिया के मित्रों की सूची के भी कोहीनूर हैं।

उम्मीद है, हम मिलकर संयुक्त विचारधारा और संयुक्त नेतृत्व की अवधारणा में आस्था तथा विश्वास रखने वाले देशभर के अपूर्वाग्रही लोगों को तलाश कर वंचित समुदायों के हित में मानसिक विभ्रमों को तोड़ने तथा संविधानसम्मत कारवां बनाने में अवश्य ही आगे बढेंगे और एक दिन सफल भी होंगे। आशीष और अनंत शुभकामनाएं।
-आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, 9875066111, 29.12.2019.

फेसबुक मित्र अनीता मीणा जी को आशीष तथा शुभकामनाएं।

अध्यापन और प्रबंधन के साथ-साथ निर्भीक होकर संतुलित एवं सटीक लेखन। हर सामयिक तथा जरूरी विषय पर बेलाग अभिव्यक्ति। सीखने की असीम चाहत। बेजोड़ संगठक तथा सृजनशील। महिला अधिकारों के साथ-साथ समग्रता पूर्ण चिंतन तथा विमर्श को समर्पित। आकर्षक व्यक्तित्व की मालकिन मेरी फेसबुक मित्र अनीता मीणा जी को आशीष तथा शुभकामनाएं।-28.12.2019

वर्ष 2020 के लिए संकल्प सुझाएँ

वर्ष 2020 के लिए व्यक्तिगत, सामुदायिक और सर्वव्यापक व्यवस्था हेतु एक-एक संकल्प सुझाएँ और जो अच्छे लगें उनको अपनाएं।

अंधेरे में टकराना क्षम्य है। मगर उजाले में टकराना अपराध है।

अंधेरे में टकराना क्षम्य है। मगर उजाले में टकराना अपराध है। जब तक ज्ञात नहीं था, हम भी जयकारे लगाते थे। मगर अब सिर्फ जोहार। यद्यपि राम-राम सा बोलने में कोई परहेज नहीं, क्योंकि जेहनी जहरखुरानी के शिकारियों की भी पहचान होती जा रही है।-आ. ताऊ।-29.12.2019

भारत में न तो कोई शूद्र है और न हीं मनुस्मृति लागू है।

भारत में न तो कोई शूद्र है और न हीं मनुस्मृति लागू है।-[देखें अनुच्छेद 13-1]-आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा

जैसा कि मैंने अपनी मूल पोस्ट में लिखा है कि ''न मैं, न मेरे पूर्वज शूद्र थे। वर्तमान में तो कोई भी शूद्र नहीं है। [देखें अनुच्छेद 13-1] शूद्र असंवैधानिक और अपमानकारी संबोधन है।''

एक मित्र का कहना है कि कि ''भागवत हमे शूद्र साबित करने पे पड़ा हुआ है।''

एक अन्य मित्र का कहना है कि ''रामायण पढ़ लेना सब पता चल जायेगा।''

मुझे नहीं लगता कि संविधान पर रामायण या मनुस्मृति भारी हैं। देश रामायण या मनुस्मृति से नहीं, बल्कि संविधान से चलता है और संविधान के मुताबिक ऐसी सभी रामायण या मनुस्मृतियां जो किसी इंसान को शूद्र सिद्ध करें असंवैधानिक तथा कानून की नजर में शून्य हैं। क्या रामायण या मनुस्मृति के प्रावधानों को भारत में संविधान के उपबन्धों की भांति कानून द्वारा लागू करवाया जा सकता है? नहीं, बिल्कुल भी नहीं। फिर ऐसी बेहूदी बातों का हवाला देकर हम क्यों खुद का तथा दूसरों का समय खराब करते हैं? मुझे लगता है, इस पर विस्तार से विमर्श करने की जरूरत है।

मेरा साफ कहना है कि भागवत शूद्र नहीं कह रहा है, वह ऐसा कहेगा भी नहीं। वह इतना नासमझ या मूर्ख नहीं है, उसके पास जनबल, धनबल और बाहुबल तीनों भौतिक ताकतें हैं। इन तीनों ताकतों को संचालित करने हेतु बुद्धिबल भी है। सबसे बड़ी बात अब तो सत्ता भी है। जिसके बल पर वह आसानी से बिकने वाले वंचित समुदाय के बहरूपियों को खरीद सकता है और खरीदता भी रहा है। खरीदने का मतलब रुपयों से ही खरीदना नहीं होता है। तब ही तो बेशक कुछ मित्रों को बुरा लग सकता है, मगर असल में हमें यानी इस देश के 85 फीसदी वंचितों को शूद्र सिद्ध करने में संघ के छद्म मित्र तथा इस देश के संविधान के असली दुश्मन बसपाई और बामसेफी दिनरात लगे हुए हैं। सबसे दु:खद तो यह है कि ऐसे लोग अपने आप को अम्बेड़करवादी भी कहते हैं। अम्बेड़कर के कंधों पर बैठकर अपनी कारिस्तानियों को छिपा रहे हैं। ऐसे लोग संविधान, अम्बेड़कर और सामाजिक सौहार्द के भी असली दुश्मन हैं।

हमें हवा में गोली दागने की जरूरत नहीं है, बल्कि हमें उन बातों तथा लोगों पर भी विचार करना चाहिये, जिनके जरिये 70 साल से भारत के वंचितों को लगातार ऐसे ढोंगी लोगों द्वारा गुमराह किया जाता रहा है। क्या कारण है कि संविधान लागू होने से पहले भारत में लागू आधी-अधूरी, मनुवादी व्यवस्था (आधी अधूरी इसलिये, क्योंंकि संविधान लागू होने से पहले भारत के बड़े हिस्से पर अंग्रेजी कानून लागू था तथा आदिवासियों पर अंग्रेजों या बामणों की मनुवादी व्यवस्था लागू नहीं थी) जब संविधान का अनुच्छेद 13 (1) लागू होते ही एक झटके में शून्य और असंवैधानिक धोषित हो गयी, उसके बावजूद भी इन बसपाई, बामसेफी छद्म संघियों या अम्बेड़कर के दुश्मन, ढोंगी अम्बेड़करवादियों का एक भी भाषण मनुस्मृति का नाम लिये बिना और देश की 85 फीसदी आबादी को शूद्र घोषित किये बिना मुक्कमल/सम्पूर्ण नहीं होता है?

समय आ रहा है, जब वंचित समुदायों की मसीहाईगिरी करने वाले इन ढोंगी बहरूपियों को वंचितों द्वारा ऐसे दुत्कारा जायेगा, जैसे दूध से मक्खी फेंकी जाती है। अत: वंचित समुदाय के सभी अच्छे और सच्चे लोगों को अपने विवेक का उपयोग करने की आदत डालनी होगी। भारत में न तो कोई शूद्र है और न हीं रामायण या मनुस्मृति लागू है। यह देश संविधान से संचालित होता है, लेकिन संविधान तथा अम्बेड़कर की दुहाई देने वाले ही अम्बेड़कर के संघर्ष तथा संविधान की गरिमा को पलीता लगा रहे हैं। ऐसे लोगों से दूरी बनाना ही, इनसे बचाव का उपाय है। अन्यथा सावधानी हटी और आपके दिमांग पर इनकी शूद्रत्व वाली गुलामी घटी।

आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, 9875066111, 28.12.2019 (Between 10 to 18 Hrs.)

बी सिंह मोहचा: इनकी अपनी वही विचारधारा है, जिसमें स्थानीयता की सुगंध है।

बी सिंह मोहचा एक ऐसा जोशीला युवा जो लगातार अपने मिशन में जुटा रहता है, बेशक लोग व्यवधान पैदा करें या बाधक बनें। कभी मिला नहीं, लेकिन लगता नहीं कि अपरिचित हैं। इनकी अधिकतर पोस्ट स्थानीय मुद्दों को सम्बोधित होती हैं, जबकि इनका फेसबुक ग्रुप एक समय मीणा समुदाय का सबसे बड़ा ग्रुप हुआ करता था। इनके ग्रुप में शुरू से ही राजस्थान से बाहर के मीणा शामिल रहे हैं। इनका कार्यक्षेत्र भी राजस्थान से बाहर ही है। सम्भवतः यह इनकी बेजोड़ पहचान है।

इतने बड़े ग्रुप को संचालित करने हेतु इनके साथ सक्रिय और विश्वसनीय मित्रों की टीम है, जो इनकी प्रबंधन काबलियत का प्रमाण है। मैंने इनको कभी अहंकारी और अशिष्ट भाषा का उपयोग करते नहीं देखा। जो अपने आप में विशेष बात है। इनकी अपनी वही विचारधारा है, जिसमें स्थानीयता की सुगंध है। आंचलिकता की महक इनके लेखन और इनके ग्रुप में कभी भी महसूस की जा सकती है।
साधुवाद।-आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, 9875066111, 28.12.2019.

फेसबुक मित्र भाई राजेश कोटवाल्या मीणा

अत्यंत शिष्ट, संयमित, सटीक, परिपक्व और उद्देश्यपरक लेखन तथा विवेचना करने में माहिर। सौम्य व्यक्तित्व, लेकिन स्वाभिमान के रक्षक, मध्य प्रदेश के देवास जिला निवासी फेसबुक मित्र भाई राजेश कोटवाल्या मीणा जी से मुझे भाई शशि कुमार मीणा जी ने परिचित करवाया था। जिसके लिये मैं उनका आभारी हूँ।

उम्मीद करता हूँ कि भाई कोटवाल्या जी आगे भी सस्नेह मार्गदर्शन करते रहेंगे। आपका विशेष आभार।

-आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, 9875066111, 28.12.2019.

धनराज घुनावत

फेसबुक मित्र धनराज घुनावत जी से सम्भवतः कभी मिला था, याद नहीं, लेकिन इनको पढ़कर लगता है कि हर दिन मिलता रहता हूँ। आप साहस, संयम और सटीकता की मिशाल हैं। साधुवाद। आशा है, आपका मार्गदर्शन और स्नेह मिलता रहेगा।

वैकल्पिक मार्ग का निर्माण कर मंजिल पर पहुंचें?

यदि हमारे और मंजिल के बीच गहरी खाई खोद दी गयी है तो पहले खाई खोदने वाले से निपटें या वैकल्पिक मार्ग का निर्माण कर मंजिल पर पहुंचें?-28.12.2019

जब तक हम सिर्फ दूसरों की आलोचना ही करते रहेंगे, फिसलते और पिछड़ते रहेंगे।

जब तक हम सिर्फ दूसरों की आलोचना ही करते रहेंगे, फिसलते और पिछड़ते रहेंगे।-27.12.2019

समयानुकूल सही और सुगम रास्ते भी हमें ही बनाने होंगे।

दूसरों के बनाये रास्तों से मंजिल मिलना सम्भव हुआ होता तो हम से पहले उनको ही मंजिल मिल चुकी होती। यदि हमें अपना लक्ष्य हासिल करना है तो समयानुकूल सही और सुगम रास्ते भी हमें ही बनाने होंगे।

इनसे हमेशा सतर्क रहें।

सबसे खतरनाक लोग जो हमेशा डराते, भड़काते, उकसाते और आग लगाते हैं। जिनका दूसरा काम झूठ तथा नफरत फैलाना और अपने आका की जी हजूरी करना ही होता है। इनसे हमेशा सतर्क रहें।-27.12.2019

बामणों पर दोषारोपण करके हम अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।

आजादी के बाद वंचितों के साथ हुए या हो रहे विभेद या नाइंसाफी के लिए हम वंचित ही जिम्मेदार हैं। बामणों पर दोषारोपण करके हम अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।-27.12.2019

जजों के लिए ऐसी किसी परीक्षा की अनिवार्यता नहीं।

सुना है सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने हेतु वकीलों को परीक्षा पास करनी पड़ती है, लेकिन जजों के लिए ऐसी किसी परीक्षा की अनिवार्यता नहीं।-27.12.209

Padam Nareda एक ऐसा अनूठा

Padam Nareda एक ऐसा अनूठा नाम जिसके कैरियर की सुरक्षा के प्रति मैं अनायास ही चिंतित हो जाता हूँ। कारण मुझे प्रशासकों की निष्ठुरता तथा अवसरवादिता का अनुभव है। संयम बरतने की सलाह के साथ उज्ज्वल भविष्य की हृदय से कामना करता हूँ।-27.12.2019

इंसान किधर-किधर जायेगा? सबसे दुःखद-मुझे ऐसे लोग नहीं मिलते जो संविधान को जानने हेतु आमंत्रित करते हों?

संघ वाले बोलते हैं कि शाखा में तो आओ। भीम वाले भी कैडर कैम्प में बुलाते हैं। यीशू वाले भी प्रार्थना हेतु चर्च में बुलाते हैं। एसी भारत सरकार वाले भी कटाष्णा बुलाते हैं। इंसान किधर-किधर जायेगा? इंसान वहीं जायेगा, जिधर को जाने को उत्कण्ठा स्वत: या विवेक या अंतर्मन में जन्म लेगी। जिस दिन जिस किसी के भी मन में यह सब होगा, अपने आप उधर का कारवां बनेगा। सबसे दुःखद-मुझे ऐसे लोग नहीं मिलते जो संविधान को जानने हेतु आमंत्रित करते हों?
आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा
9875066111, 28.12.2019.

कितने लोगों को किस किस का प्रूफ दोगे?


कितने लोगों को किस किस का प्रूफ दोगे? सच्चे, अच्छे और सद्भावी लोग कभी सबूत नहीं मांगते। क्या आपने मुझ से मेरी किसी बात का सबूत मांगा?

एक समय था जब लोग मुझ से पूछते थे कि नौकरियों तथा शिक्षा का आरक्षण स्थायी है, इसका सबूत दो? मेरा जवाब था कि संविधान स्थायी है, इसका सबूत दो?

फिर भी कोई बहुत दवाब दे तो उनको कहें कि सूचना अधिकार का उपयोग करें।-27.12.2019

जैसे आदिवासियत अंतिम सांसें गिन रही है।

हम प्रकृति पुत्र आदिवासी जब किसी के साथ अशिष्टता से पेश आते हैं तो मुझे लगता है जैसे आदिवासियत अंतिम सांसें गिन रही है। प्रकृति बहुत उदार है।-27.12.2019

आदिकिसान विचारधारा के पुरोधा अवधेश मीणा की पैनी दृष्टि तथा तथ्यपरक लेखनी का मैं कायल हूँ।

मैं आदिवासी और किसान दोनों हूँ, मगर अभी तक आदिकिसान शब्द के प्रति मुझे आत्मीयता का अहसास नहीं होता। यह अलग बात है कि आदिकिसान विचारधारा के पुरोधा अवधेश मीणा की पैनी दृष्टि तथा तथ्यपरक लेखनी का मैं कायल हूँ। साधुवाद।-आ. ताऊ, 27.12.2019

आदिवासी युवा चिंतक रामकेश हातोज

भाषागत अशुद्धियों के बावजूद और औपचारिक रूप से अधिक शिक्षित न होते हुए आदिवासी युवा चिंतक रामकेश हातोज के कमेंट्स में जो धार देखने को मिलती है, वह काबिले तारीफ और अनेक लोगों के लिये बड़ी चुनौती है। साधुवाद। -आदिवासी ताऊ, 27.12.2019

आश्चर्यजनक विद्वता

आश्चर्यजनक विद्वता: जो लोग #में और #मैं का अंतर नहीं समझते वे भी दूसरों की लेखनी में, मैं (ईगो) तलाशते हैं!-आदिवासी ताऊ 9875066111, 27.12.2019

Friday 27 December 2019

धर्म, पंथ, आस्था और विश्वास

धर्म, पंथ, आस्था और विश्वास प्रत्येक व्यक्ति का नितांत व्यक्तिगत मूल अधिकार है। (अनुच्छेद-21) अतः हमें इस बारे में नकारात्मक कमेंट करने से बचना होगा। अन्यथा खण्ड-खण्ड हो जाएंगे।-28.12.2019

आदिवासी भारत के नागरिक

मनमाने कानूनों का विरोध जरूरी है, लेकिन वर्तमान संविधान के अनुच्छेद 5 से 11 के तहत आदिवासी तो पहले से ही भारत के नागरिक हैं।-26.12.2019

Note: यह पोस्ट उन लोगों के लिए है जो आदिवासियों को गुमराह करते हैं कि आदिवासी भारत का नागरिक नहीं है।

किसी को शूद्र बनाना असंवैधानिक

शूद्र शब्द का वैधानिक अस्तित्व 26 जनवरी, 1950 को समाप्त हो गया। जो लोग इसे जिंदा बनाये हुए हैं, वे संविधान के दुश्मन हैं। अत: किसी को शूद्र कहना गाली देना है। किसी को भी शूद्र नहीं कहें, बल्कि उसे वही कहें जो वह वास्तव में है। जैसे किसान यदि जाट, मीणा, यादव, धाकड़, जूलर, कर्मी, पाटीदार आदि जो भी है, उसे वही माना और कहा जाये। अकारण किसी को शूद्र बनाना असंवैधानिक होने के साथ-साथ नासमझी और साथ ही अशिष्टता भी है।-27.12.2019

आदिवासियत अंतिम सांसें गिन रही है।

हम प्रकृति पुत्र आदिवासी जब किसी के साथ अशिष्टता से पेश आते हैं तो मुझे लगता है जैसे आदिवासियत अंतिम सांसें गिन रही है। प्रकृति बहुत उदार है।-27.12.2019

Thursday 26 December 2019

जियो और जिंदादिली से जियो

मित्रो, डर भगायें और जिंदा होने का अहसास जगायें। मौत तो एक दिन सबको आनी ही है। जियो और जिंदादिली से जियो। जोहार!-26.12.2019

डस्टबिन की शोभा बढाने वाली विचारधारा की मंजिल किधर है?

डस्टबिन दफ्तर में रहती है, लेकिन डस्टबिन का कचरा किधर जाता है? डस्टबिन की शोभा बढाने वाली विचारधारा के अंधभक्त समझें उनके विचारों की मंजिल किधर है?-25.12.2019

क्या हम SC-ST-OBC कभी एक हो सकते हैं?

SC वाले बोलते हैं, ST हमारे साथ नहीं। SC-ST बोलते हैं, OBC हमारे साथ नहीं। OBC वाले बोलते हैं, SC-ST के लोग OBC के साथ नहीं। इस तरह क्या हम कभी एक हो सकते हैं?

घटिया लोगों को सत्ता पर काबिज होने का रास्ता भी तो संविधान ने ही खोला है!

बात इतनी सी नहीं है कि सत्ता पर घटिया लोगों का कब्जा है, जिन्होंने संविधान को निष्क्रिय बना डाला, बल्कि इन लोगों को सत्ता पर काबिज होने का रास्ता भी तो संविधान ने ही खोला है!-25.12.2019

विवादास्पद मुद्दे हमें कभी एक नहीं होने देंगे।

क्या यह सम्भव नहीं कि संयुक्त विचारधारा हेतु हम केवल उन्हीं मुद्दों को प्राथमिकता दें, जिन पर आमराय है, क्योंकि विवादास्पद मुद्दे हमें कभी एक नहीं होने देंगे।-25.12.2019

एक जिंदा नारी, सब पर भारी!

एक जिंदा नारी, सब पर भारी!
क्या 5000 में से कोई नारी है?
25.12.2019

Wednesday 25 December 2019

सत्ताधारी पार्टी के सांसदों के सामने क्या हाल होता होगा?

नवोदित छोटी सी पार्टी के हारे हुए सांसद प्रत्याशियों के सामने आम लोगों की जबान को जंग लग जाती है, तो सत्ताधारी पार्टी के सांसदों के सामने क्या हाल होता होगा? फिर भी बात करते हैं कि यह देश हमारा है। हम इस देश के मूलवासी हैं!-MOST VOICE, 25.12.2019

सर्वाधिक बुद्धिमान और लोकनायक

यदि 4-5 लाख लोग किसी को ट्यूटर पर फॉलो करने लग जाएं तो क्या ऐसा व्यक्ति सर्वाधिक बुद्धिमान और लोकनायक हो जाएगा?-MOST VOICE, 13.12.2019

जब तक भ्रष्ट MP, MLA और लोक सेवक सम्मानित होते रहेंगे, आम लोगों को इंसाफ मिलना असम्भव है!

जब तक भ्रष्ट MP, MLA और लोक सेवक सम्मानित होते रहेंगे, आम लोगों को इंसाफ मिलना असम्भव है!
- MOST VOICE, 13.12.2019

आम लोगों को भ्रष्टाचार में शामिल कर लो-कोई नहीं बोलने वाला

नया ज्ञान: हर एरिया के कुछ आम लोगों को भ्रष्टाचार में शामिल कर लो, फिर अरबों-खरबों के घोटाले करो, कोई नहीं बोलने वाला!
MOST VOICE, 131219

बेशक जिनकी सांस चल रही है, वे अभी तक मृतक नहीं, लेकिन क्या वाकयी सबके सब जिंदा हैं?

बेशक जिनकी सांस चल रही है, वे अभी तक मृतक नहीं, लेकिन क्या वाकयी सबके सब जिंदा हैं?-आदिवासी ताऊ, 13.12.19

Mr आरक्षित क्लास one तुमको MP बनने के सपने देखने का वाकयी हक है। अपने ही वर्ग के दर्जनों ग्रुप D को नौकरी से जो निकाल चुके हो!

Mr आरक्षित क्लास one तुमको MP बनने के सपने देखने का वाकयी हक है। अपने ही वर्ग के दर्जनों ग्रुप D को नौकरी से जो निकाल चुके हो!

मोदी सरकार और उसके अंधभक्त अर्थव्यवस्था को समझते नहीं या समझना नहीं चाहते? दोनों ही स्थिति खतरनाक हैं!

मोदी सरकार और उसके अंधभक्त अर्थव्यवस्था को समझते नहीं या समझना नहीं चाहते? दोनों ही स्थिति खतरनाक हैं!-MOST VOICE, 14.12.2019

10 जिंदा लोगों की तलाश

मुझे केवल 10 जिंदा लोगों की तलाश है, उसके बाद हम बताएँगे कि वंचितों की असली समस्या कौन हैं और उनसे कैसे निपटें?-9875066111, 14.12.2019
https://www.facebook.com/NirankushWriter/posts/987037088322722

क्या यही संवैधानिक लोकतंत्र है?

न्यायालय नागपुर की भाषा बोलने लगें और नागरिक प्रतिनिधि चुप्पी साधे रहें, क्या यही संवैधानिक लोकतंत्र है? आदिवासी ताऊ-MOST VOICE, 18.12.2019

वास्तविक जनांदोलन हो गया तो?

बहुत छोटे से जनांदोलन से ही कोर्ट संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली सरकार के पक्ष में खड़ा हो गया! वास्तविक जनांदोलन हो गया तो?-MV-18.12.2019

हम वंचितों ने ही फासिस्ट ताकतों को मजबूत बनाने के आत्मघाती प्रयास किये हैं!

वर्तमान हालातों के लिये हम ही सर्वाधिक जिम्मेदार हैं! हम वंचितों ने ही फासिस्ट ताकतों को मजबूत बनाने के आत्मघाती प्रयास किये हैं!-18.12.2019

FB, ट्यूटर, यूट्यूब के इंडियन दफ्तरों में भी श्रृेष्ठ देशभक्तों का ही कब्जा

विशेष सूचना: सतर्क रहें-प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ FB, ट्यूटर, यूट्यूब के इंडियन दफ्तरों में भी श्रृेष्ठ देशभक्तों का ही कब्जा है!-18.12.-2019

डरे हुए लोगों का बहुमत, मृत लोगों में भी जान फूंक देता है।

डरे हुए लोगों का बहुमत, मृत लोगों में भी जान फूंक देता है।-18.12.2019

क्या हम गत 70 सालों में वंचितों का बेड़ा गर्क करने वाले सर्वश्रेष्ठ 7 वंचितों के नाम

क्या हम गत 70 सालों में वंचितों का बेड़ा गर्क करने वाले सर्वश्रेष्ठ 7 वंचितों के नाम सार्वजनिक करने का खतरा उठाने का साहस दिखा सकते हैं?-18.12.2019

हक पाने की प्रथम पात्रता-सही एवं सटीक सवाल पूछने की समझ और साहस

:हक पाने की प्रथम पात्रता:
MP एवं MLA से सार्वजनिक रूप से सही एवं सटीक सवाल पूछने की समझ और साहस पैदा करें।-MOST VOICE-22.12.2019

संघी ज्ञान: प्रथम और अंतिम आक्रांता तो देशभक्त लेकिन मुसलमान विदेशी और देशद्रोही!

संघी ज्ञान: प्रथम और अंतिम आक्रांता तो देशभक्त लेकिन मुसलमान विदेशी और देशद्रोही!-MOST VOICE, 22.12.2019

सावरकरी संघी माफी वीरों और मोशाभक्तों की अनदेखी ही सबसे बड़ी सजा है!

सावरकरी संघी माफी वीरों और मोशाभक्तों की अनदेखी ही सबसे बड़ी सजा है!-MOST VOICE, 23.12.2019

समान नागरिक संहिता विधेयक लाया जाता है तो सबसे अधिक नुकसान आदिवासियों को होगा

वाकयी समान नागरिक संहिता विधेयक लाया जाता है तो सबसे अधिक नुकसान आदिवासियों को होगा। जिसे संघी-मोशाभक्त नहीं समझ सकते।-23.12.2019

मानसिक गुलामों को देश से अधिक मुस्लिम विरोध प्रिय

विदेशी मूल के लोगों की संतान या उनकी जेहनी जहरखुरानी के शिकार मानसिक गुलामों को देश से अधिक मुस्लिम विरोध प्रिय है।-23.12.2019

सोशल मीडिया ने शिष्टता समाप्त कर दी है

सोशल मीडिया ने शिष्टता समाप्त कर दी है। अतः अशिष्ट को बर्दाश्त नहीं करें और तुरन्त ब्लॉक करें। क्या यही एक विकल्प बचा है?-23.12.2019

भाजपा का हारना मात्र पर्याप्त नहीं है

भाजपा का हारना मात्र पर्याप्त नहीं है, मजबूत लोकतांत्रिक ऐसा विकल्प भी जरूरी है, जो देश के MOST के हक दिला सके।-MOST VOICE, 23.12.2019

राजकुमारों और चमचों को नवाब बनाने वाली कांग्रेस को भी अपनी गिरेबान में झांकना होगा।

राजकुमारों और चमचों को नवाब बनाने वाली कांग्रेस को भी अपनी गिरेबान में झांकना होगा। अन्यथा सत्ता से दूर रहना ही अच्छा है।-23.12.-2019

है कोई पार्टी जो खरी उतरती हो?

सबसे पहले होगी संविधान की रक्षा।
उसके बाद ही पार्टियों की समीक्षा।।
है कोई पार्टी जो खरी उतरती हो?
23.12.2019

अब संविधान की बात करनी होगी

जब तक हम मनुवाद को दुश्मन बताते रहेंगे, कभी सफल नहीं हो सकते। मनुवाद नहीं, अब संविधान की बात करनी होगी।-23.12.2019

संयुक्त विचार व संयुक्त नेतृत्व

माया-मेश्राम ही सही विकल्प होते तो 70 साल बर्बाद नहीं हुए होते। बिना इनसे मुक्ति मिले, संयुक्त विचार व संयुक्त नेतृत्व संभव नहीं।-24.12.2019

अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना

जो माया-मेश्राम संगठन तक में MOST को वाजिब हिस्सेदारी नहीं दे सकते, उनसे MOST को इंसाफ की उम्मीद? अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है!-24.12.2019

MOST को हिस्सेदारी और भागीदारी देने हेतु क्या कोई योजना है?

MOST को हिस्सेदारी और भागीदारी देने हेतु INC, APP, BJP, BSP, SP, BTP, JD, LJP, NCP, शिवसेना आदि पार्टियों के पास क्या कोई योजना है?

क्या MOST के Rt. भ्रष्ट ऑफीसर MOST का भला कर सकते हैं? देशभर में कोई एक भी उदाहरण हो तो जनता के सामने लाया जाना जरूरी है।

क्या MOST के Rt. भ्रष्ट ऑफीसर MOST का भला कर सकते हैं? देशभर में कोई एक भी उदाहरण हो तो जनता के सामने लाया जाना जरूरी है।-24.12.2019

नेता क्या वंचितों के हितचिंतक हैं?

10% आर्थिक आरक्षण पर जो डांस करते हैं। पद्मावती और पानीपत फिल्मों की कथा के विरुद्ध जिनकी बाहें फड़कती हैं, ऐसे नेता क्या वंचितों के हितचिंतक हैं?-24.12.2019

वर्तमान परिदृश्य में आदिवासी मीणा समुदाय की दशा और दिशा

वर्तमान परिदृश्य में आदिवासी मीणा समुदाय की दशा और दिशा हम हर दिन कुछ न कुछ सीखते और बदलते रहते हैं। सबसे पहले ...